- 100 Posts
- 458 Comments
उरई के गांधी महाविद्यालय में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. दिनेश चंद्र द्विवेदी का निधन बुंदेलखंड के बौद्धिक जगत के लिए एक बड़ी क्षति है। डॉ. दिनेश चंद्र द्विवेदी पारिवारिक विरासत में मिले संस्कारों के कारण भले ही हिंदुत्ववादी विचारधारा के प्रति अपना आग्रह दर्शाते रहे हों लेकिन वास्तव में वे किसी लीक से बंधकर रहने वाले व्यक्तित्तव नहीं थे। मानवीय मूल्यों के प्रति उनका झुकाव सारी विचारधाराओं से ऊपर था, इसलिए वक्त पड़ने पर वे साम्यवाद के सिद्धांत का समर्थन करने से भी नहीं चूकते थे।
इसी तरह संस्कारों के कारण उनकी ऊपरी आस्था कर्मकांड और पुराणवादी हिंदू धार्मिकता में प्रदर्शित होती थी, लेकिन उनके अंदर एक बहुत बड़ी पिपासा थी कि वे एक बौद्ध विद्वान के रूप में पहचाने जाएं। उन्होंने अपनी युवावस्था में इसी के तहत तपस्या में लीन बुद्ध की तरह अपना चित्र बनवाया था जो आज भी उनके अतिथिकक्ष में शोभायमान है। जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने बुद्ध के दर्शन पर एक पुस्तक भी लिखी। वे भाषण देते थे तो तत्सम से युक्त हिंदी का उनका प्रवाह सुनने लायक होता था और उनको सुनते हुए स्मरण होता था कि सरस्वती सिद्ध होने जैसा मुहावरा उन जैसे विद्वान को देखकर गढ़ा गया होगा। वे कई अर्थों में मौलिक विचारक थे, जिनसे हम जैसे कई लोग प्रेरित होते थे। जाहिर है कि ऐसे में उनका आकस्मिक अवसान हम लोगों के लिए एक सम्बल के ढह जाने जैसा है।
Read Comments