Menu
blogid : 11678 postid : 11

तब जालौन के चौधरी होते राष्ट्रपति…

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
  • 100 Posts
  • 458 Comments

इंदिरा गांधी के समय अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के शक्तिशाली महासचिव रह चुके चौधरी रामसेवक आज राजनीति की गुमनामी में हैं। जब मैं उनके बारे में विचार करता हूं तो मुझे लगता है कि जालौन जिले के लोगों में दूरदर्शिता का कितना अभाव है। यदि जिले के लोग उनका साथ देते तो वे निश्चित रूप से देश के सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहुंच गए होते, इससे राष्ट्रीय क्षितिज पर जालौन जिले का नाम मजबूती से तो स्थापित हुआ ही होता साथ में जिले को विकास के मामले में भी काफी कुछ हासिल हो सकता था। नरसिंहा राव के समय चौधरी रामसेवक का नाम उप राष्ट्रपति के लिए चला था। तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा उनके नाम पर सहमत थे क्योंकि उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहते हुए चौधरी साहब को विधि संकाय में पढ़ाया था। नरसिंहा राव भी उनके मुरीद थे। चौधरी साहब ने उप राष्ट्रपति पद के लिए लॉबिंग के तहत अपने आवास पर एक भोज आयोजित किया था जिसमें नरसिंहा राव न केवल पहुंचे थे बल्कि उन्होंने ४० मिनट का समय दिया था। मैं भी भोज में सम्मिलित था और मुझे याद है कि नरसिंहा राव उनसे जिस तरह निकटता जता रहे थे, सबने मान लिया था कि उनका उप राष्ट्रपति होना पक्का हो गया है, जो दरअसल राष्ट्रपति पद की ओर बढ़ने की सीढ़ी है। भोज में अर्जुन सिंह और दिनेश सिंह जैसे दिग्गज शामिल थे और उनकी हैसियत चौधरी साहब के सामने बौनी नजर आ रही थी। यह दूसरी बात है कि नरसिंहा राव ने जब अगले दिन चौधरी साहब को यह संदेश भिजवाया कि वे उन दिनों पार्टी के शक्ति केंद्र के रूप में उभरे युवा नेता से मिल लें तो चौधरी साहब ने कह दिया कि मुझे कुर्सी मिले या न मिले लेकिन मैं इतने जूनियर नेता से अपनी कोई बात कहने नहीं जाऊंगा।

चौधरी साहब की धाक उस समय भी मैंने अनुभव की जब मैं गोवा जा रहा था। झांसी स्टेशन पर उरई आते समय चौधरी साहब से मेरी भेंट हो गई। उन्होंने वहीं अपने विजिटिंग कार्ड पर गोवा के तत्कालीन गवर्नर भानुप्रताप सिंह के लिए कुछ लिख दिया। जब पणजी पहुंचने पर यह विजिटिंग कार्ड भानुप्रताप सिंह के पास पहुंचा तो उनका एडीसी, जो मुझे अगले दिन मिलने के लिए पता करने की बात कहकर रुखसत कर चुका था, भागता हुआ मेरे पीछे आया। भानुप्रताप सिंह से जब मेरी मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा कि लाट साहब का प्रोटोकॉल बहुत महत्वपूर्ण होता है, लेकिन आप लोग मेरे राजनीतिक गुरु के द्वारा भेजे गए हैं, इस कारण मुझे आपको तत्काल बुलवाना पड़ा। भानुप्रताप सिंह ने मुझे और मेरे मित्रों को काफी सम्मान दिया और भरपूर आतिथ्य उपलब्ध कराया।
इन प्रसंगों के उल्लेख का तात्पर्य सिर्फ यह है कि चौधरी साहब का पूरे देश में जिस तरह सम्मान था उसे लेकर जालौन जिले के लोगों ने कभी गौरव महसूस नहीं किया। उनके मुकाबले जिन नेताओं को तरजीह दी गई वे व्यक्तिगत स्वार्थ पूरे करने में तो सहायक बने लेकिन उनसे उस ऊंचाई पर पहुंचने की कभी कल्पना नहीं की जा सकती जो शिखर सहयोग मिलने पर चौधरी रामसेवक के लिए आसान था। यदि वे देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचते तो यह केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं होती बल्कि इस मान में जालौन जिले के हर आदमी को कुछ न कुछ हिस्सा जरूर मिलता। सार्वजनिक जीवन में हम अगर अपने संकुचित व्यक्तिगत स्वार्थों से परे होकर उन लोगों पर दांव लगाएं जिनकी उड़ान बेहद ऊंची हो तो स्थितियां इतनी ज्यादा बदल सकती हैं कि हमें उसका अंदाजा नहीं है। क्या इस बारे में नहीं सोचा जाना चाहिए?

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply