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एसओ कमाता करोड़ों, मुझसे ही क्यों पूछते…

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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यूपी के ८१ आईपीएस अफसरों ने अपनी आय और सम्पत्ति का विवरण समय पर प्रस्तुत नहीं कर पाया। यह खबर दैनिक जागरण के उत्तर प्रदेश में प्रचलित संस्करणों में दिनांक २६ जून को प्राथमिकता से प्रकाशित हुई है। इसके पहले दैनिक जागरण में ही उत्तर प्रदेश के उन आईएएस अधिकारियों की संख्या प्रकाशित हुई थी जिन्होंने अपनी सम्पत्ति के ब्यौरे को उजागर करने से बचने की कोशिश की थी। ऐसा नहीं है कि सूची में शामिल सभी अधिकारी काली कमाई करने में सिद्धहस्त हों और उन्हें यह भय हो कि अगर वे अपने आय और परिसम्पत्तियों को उजागर कर देंगे तो उनके ऊपर कानून की आफत टूट पड़ेगी। अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए हर वर्ष यह ब्यौरा देने की बाध्यता शुरू से चली आ रही है। इसके बावजूद अधिकारी और कर्मचारी अकूत सम्पत्ति कमाते रहे और कानून व भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकीं। आय व सम्पत्ति के ब्यौरे को शासन में दाखिल करने का कर्मकांड इसी वजह से कई ईमानदार अधिकारियों को बेकार का पाखंड लगने लगा है और खिन्नता में वे समय पर ब्यौरा दाखिल न कर उन लोगों की सूची में शामिल हो जाते हैं जो भ्रष्टाचार से अचानक हैसियत में हुए बेतहाशा इजाफे के कारण इस नियम के पालन से कन्नी काट जाते हैं।
अब संचार के साधनों के विकास और जनसूचना अधिकार अधिनियम जैसी नयी व्यवस्थाओं के अस्तित्व में आने से तमाम नियमों के अनुपालन की पड़ताल होने लगी है, जिससे सम्भव है कि जागरूकता बढ़े और स्थितियां कुछ बदलें। हालांकि इस मामले में मीडिया की कसरत भी बेहद रस्मी लगती है। कब उसका एजेंडा बदल जाए और अपने मिशन को तार्किक परिणति पर पहुंचाने के दायित्व से मुकर कर वह सनसनी के नए स्रोत खोजने में लग जाए। उत्तर प्रदेश में अधिकारियों और कर्मचारियों की हैसियत सोच से परे है। हालत तो यह है कि जिन अधिकारियों के पास ऊपर देने के लिए मोटी रकम न हो वे अच्छी पोस्टिंग का सपना भी नहीं देख सकते।
आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की तो बात छोड़ें, जालौन जैसे जिले में बालू खनन क्षेत्र में तैनात एसओ ही एक साल की पोस्टिंग में करोड़ों की हैसियत बना लेता है। फिर भी उसे कोई देखने वाला नहीं है। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए उत्तर प्रदेश में पुलिस के कई संगठन हैं जिनमें भ्रष्टाचार निवारण संगठन, सतर्कता विभाग के अलावा सहकारिता, खाद्य आदि विभागों के लिए अलग से सतर्कता संगठन गठित हैं, लेकिन सभी कागजी बने हुए हैं। इसमें बहुत कुछ दोष तो आईएएस अधिकारियों का है, जो पुलिस के किसी संगठन को भ्रष्टाचार के मामले को स्वतः संज्ञान में लेकर कार्रवाई करने के अधिकार में हमेशा बाधक सिद्ध होते हैं। मायावती के २००३ के मुख्यमंत्रित्व काल में भ्रष्टाचार से सम्बंधित पुलिस के सभी संगठनों का एकीकरण कर उन्हें अधिक शक्तियां प्रदान करने या लोकायुक्त के अधीन उनका स्वतंत्र सेट-अप बनाने के लिए विचार किया गया था। यह विचार सफल होता तो उत्तर प्रदेश पुलिस का सतर्कता विभाग सीबीआई की तरह सक्षम नजर आ सकता था, लेकिन मायावती की सरकार गई तो बीत गई सो बात गई की बात हो गई। २००७ में मायावती जब पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने खुद भी अपने उक्त प्रस्ताव पर पूरे पांच साल एक भी दिन निगाह नहीं डाली। उत्तर प्रदेश में इस समय लगभग सारे आईएएस, आईपीएस अधिकारी अरबपति हैं और अपनी वैधानिक आय से वे इतनी हैसियत के मालिक कभी नहीं बन सकते। अगर उनकी आय व परिसम्पत्ति सम्बंधी वार्षिक ब्यौरे की सूक्ष्म पड़ताल की कोई व्यवस्था कायम हो जाए तो यह कर्मकांड सार्थक सिद्ध हो सकता है। इससे न केवल भ्रष्टाचार पर अंकुश होगा बल्कि अधिकारियों की अकूत सम्पत्ति जब्त करने का विधान बनाकर प्रदेश की संसाधन सम्बंधी आवश्यकताओं की पूर्ति भी आम जनता को बिना परेशान किए सम्भव हो सकेगी, लेकिन अभी ऐसा होने की कल्पना करना दिवास्वप्न की तरह है। जब तक इस मामले में राजनीतिज्ञ और अफसरशाही चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत चरितार्थ करते रहेंगे तब तक इस नाम पर केवल यह होगा कि कोई पत्रकार खबर छापकर अपनी पीठ एक दिन के लिए थपथपा ले और अगले दिन उसका अखबार कतर-पेंचकर लिफाफे की शक्ल ले ले।

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