Menu
blogid : 11678 postid : 40

तालाबों को शगल की विषयवस्तु बनाने से बाज आएं

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
  • 100 Posts
  • 458 Comments

बुंदेलखंड में पिछले दो दशकों से बारिश में लगातार व्यतिक्रम की स्थिति है। कुछ साल तो ऐसे भी गुजरे जब पूरे मौसम भर ५० मिमी. बारिश भी नहीं हुई। इससे सूखा गहरा गया है। पेयजल और खेती के लिए सिंचाई की समस्या गम्भीर हो गई है। ऐसे परिवेश में इस इलाके में तालाबों की चर्चा नए सिरे से शुरू हो गई है। मैंने देखा कि इस पर फैशन की तरह काम हो रहा है। तब मैंने तालाबों की वास्तव में आज के दौर में कितनी व्यवहार्यता है और कितनी सार्थकता है, इसका आंकलन करते हुए मनन शुरू किया। जाहिर है कि मुख्य रूप से मैंने अपने को अपने जनपद जालौन तक सीमित रखा।

जिला मुख्यालय उरई में यहां एक बड़ा तालाब है जिसे माहिल तालाब के नाम से जाना जाता है। एक और तालाब है जिसे रामकुंड कहते हैं। यह दोनों तालाब उनकी विराट संरचना व अन्य विशेषताओं को देखने के बाद इस बात का इशारा करते हैं कि कभी इनका इस्तेमाल न केवल नहाने-धोने में होता रहा होगा बल्कि शुद्ध जल के स्रोत के रूप में इनका पानी पीने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता रहा होगा। कालपी तहसील में बबीना और इटौरा के तालाब को लेकर भी यही बात कही जा सकती है। जिले में और भी कई बड़े तालाब हैं जिनमें कोंच का सागर तालाब भी है। मेरे लिए यह कौतूहल का विषय था कि मैं यह जानूं कि इन तालाबों में भरे पानी का शुद्धीकरण कैसे होता होगा ताकि पीने के लिए इस्तेमाल करने पर कोई बीमारी न हो। माहिल तालाब के बारे में कहा जाता है कि यह बेतवा नहर से कुछ दशक पहले तक भरा जाता था लेकिन बेतवा नहर प्रणाली सवा सौ वर्ष ही पुरानी है जबकि तालाब हजार वर्ष पुराना है। मैंने विचार किया तो मुझे लगा कि बरसाती नाले इसमें गिराने की व्यवस्था की गई थी। तब तालाब भरने का यही तरीका था। आज तालाबों को लेकर सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह आबादी क्षेत्र से घिर गए हैं। इन तक किसी बरसाती नाले के पहुंचने का कोई रास्ता नहीं बचा है। यही बात नहर का पानी पहुंचाने को लेकर है। माहिल तालाब और रामकुंड को भरने के लिए नलकूपों की व्यवस्था की गई है। हालांकि, रामकुंड का नलकूप बस्ती की जरूरत पूरी करने की वजह से तालाब भरने के लिए नहीं चल पा रहा। माहिल तालाब में एक नई समस्या पैदा हो गई है कि नलकूप से भरे जाने के बाद पुराने पानी की निकासी के लिए भी इसमें कोई व्यवस्था नहीं बची है। यह एक उदाहरण है जिससे सीख मिलती है कि तालाबों को लेकर अंधमोह कितना खतरनाक है। पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार कराया जा सकता है और ऐसा हो भी रहा है, लेकिन विवेकशून्यता के कारण बजट की बर्बादी के अलावा इससे कुछ हासिल नहीं हुआ।

तालाबों को पुनर्जीवित करते समय उन्हें भरने की व्यवस्था बनाने के साथ-साथ पुराना पानी खाली होता रहे, इसका इंतजाम सोचना भी उतना ही जरूरी है जो आबादी क्षेत्र के तालाब के संदर्भ में बहुत चुनौतीपूर्ण है। तालाबों से पेयजल आवश्यकता की पूर्ति की अब कोई जरूरत नहीं रह गई। फिऱ भी तालाब इस कारण जरूरी हैं कि यह पाताल को सपोर्ट करते रहें। वाटर रिचार्जिंग के जरिए इनके द्वारा भूमिगत जलस्तर मैनटेन बना रहे, लेकिन माहिल तालाब जिसमें निकासी की व्यवस्था न होने से इतना सड़ा पानी भरा है कि उसके आसपास के क्षेत्र से गुजरने वाले राहगीरों को उबकाई आने लगती है तो स्पष्ट है कि वाटर रिचार्जिंग के जरिए इसके द्वारा भूमिगत जलभंडार को दूषित किया जा रहा है। घरेलू हैंडपंप जो कि पानी की पहली सतह के डिस्चार्ज से चलते हैं, उनसे जहरीला पानी निकलने लगा है। चूंकि यह धीमे-धीमे असर करता है जिसकी वजह से इससे होने वाले बड़े नुकसान की जितनी परवाह की जानी चाहिए उतनी अभी नहीं हो रही। कहने का मतलब यह है कि तालाब के जीर्णोद्धार के समय उसमें भरा पानी हमेशा स्वच्छ रहे इसकी बहुत चिंता करनी होगी। पहले तालाब में काफी मछलियां पड़ी रहती थीं। साथ ही कछुआ व अन्य जलचर होते थे जो निरंतर पानी के शुद्धीकरण की प्रक्रिया को चलाते रहते थे।

माहिल तालाब में सीवर लाइन का पानी पहुंच रहा है। कई घरों के शौचालयों की निकासी है। इस तरह की गंदगी से पानी की हालत यह हो गई है कि अक्सर हजारों की संख्या में मछलियां मर जाती हैं और किनारे पर जब मरी मछलियों का ढेर लग जाता है तो बदबू और तीखी हो जाती है। कछुआ और अन्य जलचरों का सर्वाइवल तो सम्भव ही नहीं रह गया। ऐसी परिस्थिति में तालाब की सतह में बजरी-चूना डलवाना और घरों की नालियों, शौचालयों व सीवर की गंदगी को किसी भी कीमत पर न जाने देना सुनिश्चित किया जाना बेहद अनिवार्य है जबकि इस पहलू पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जालौन के मुरली मनोहर तालाब में ४० लाख रुपए का बजट सुंदरीकरण पर खर्च कर दिया गया, लेकिन इसमें जो नालियां गिर रही हैं उन्हें डायवर्ट करने के लिए नाला बनाने की बात पालिका प्रशासन के दिमाग में नहीं आई। यह भी होना चाहिए कि जब तय हो जाए तालाब में कोई गंदगी नहीं जाएगी इसके बाद उसमें मछलियां, कछुआ आदि डलवाए जाने चाहिए।

माहिल तालाब के बारे में योजना बनाते समय २००८ में जालौन के तत्कालीन कलक्टर पी. गुरुप्रसाद ने इसका महत्व समझते हुए मत्स्य पालन विभाग के सहायक निदेशक से व्यवस्था करने को कहा था, लेकिन वे टालामटोली पर उतारू हो गए। ज्यादातर जगह मत्स्य पालन विभाग इसी तरह जल संरक्षण के काम से जुड़ने को लेकर अन्यमनस्कता दिखाने से बाज नहीं आता। तालाबों का जीर्णोद्धार कोई शगल नहीं है, अगर उन्हें भूमिगत जल को प्रदूषित करने से रोकने की कोई तरकीब बनती नजर न आए तो बेहतर होगा कि तालाब को पटवा कर जगह को किसी अन्य काम में इस्तेमाल कर लिया जाए। जब नलकूप की तकनीक नहीं खोजी गई थी तब तालाब सिंचाई और पेयजल के लिए मुख्य साधन थे, लेकिन अब उनकी इस रूप में कोई जरूरत न तो रह गई है और न होने वाली है।

यहां तक कि जालौन के डकोर ब्लॉक में १९८० से लेकर २००८ तक लघु सिंचाई विभाग के जरिए बहुत तालाब सिंचाई के उपयोग के लिए खुदवाए गए जिनका अस्तित्व कागजों के अलावा कहीं नहीं है। इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने के बावजूद कोई विशेष हंगामा इसी कारण नहीं हुआ कि लोग इस मुगालते में कतई नहीं थे कि नलकूपों के युग में सिंचाई के लिए तालाब उनकी कोई मदद कर पाएंगे और उनके न बन पाने से वे अपने लिए भीषण नुकसान की कल्पना कर उद्वेलित हो जाते। तालाब का विकल्प चेकडैम बन रहे हैं। शहर में पिकनिक स्पॉट के बतौर तालाबों का संरक्षण किया जा सकता है, लेकिन हर तालाब से यह अपेक्षा भी पूरा होना सम्भव नहीं है। पिकनिक स्पॉट के लिए वही तालाब चुना जा सकता है जो पर्याप्त विस्तार में हो ताकि लाइटिंग, हरियाली, बच्चों के झूले आदि का प्रबंध वहां किया जा सके। इसके बदले में सम्बंधित स्थानीय निकाय टिकट की वसूली भी कर सकता है। विडम्बना की बात यह है कि स्वस्थ मनोरंजन भी एक बड़ी मानवीय आवश्यकता है। इसे आज भुला दिया गया है, जिसकी वजह से छोटे शहरों में नगर पालिकाएं पिकनिक स्पॉट बनवाने जैसे काम में बिल्कुल भी रुचि नहीं ले रही हैं। खैर गांवों में जहां आज भी काफी खुला क्षेत्र होता है तालाब बनवाए जाने चाहिए और मनरेगा के जरिए यह काम बखूबी हुआ भी है।

इसी का नतीजा है कि २००७-०८ में सूखे के कारण जब जालौन जिले में शहर तक के हैंडपंप सूख गए थे तो भारी हाहाकार मच गया था, लेकिन अब १५०० से ज्यादा तालाबों के जीर्णोद्धार के बाद स्थिति बदल गई। इस बार १० जून से ३ जुलाई तक भीषण गर्मी रही फिर भी पूरे जिले में कहीं भूमिगत जलस्तर नीचे गिरने के कारण हैंडपंप और नलकूप बंद होने की समस्या सामने नहीं आई, लेकिन नये ग्रामीण तालाबों में भी लोग गलतियों से बाज नहीं आ रहे। मॉडल तालाबों तक में नालियां गिरने से रोकने की चिंता नहीं की जा रही और न ही मछली व अन्य रचनात्मक जलचरों के पालन के पहलू पर ध्यान दिया जा रहा है। इन स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में हमें अपनी तालाब चेतना बदलनी होगी। तालाबों को लेकर जो कार्ययोजना बने उसमें यह सारे पहलू अनिवार्य रूप से शामिल हों।

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply