नई आर्थिक नीति ने बेहद चिंतनीय परिस्थितियों का निर्माण कर दिया है। वैसे तो कोई व्यवस्था हो चाहे सामाजिक व्यवस्था चाहे राजनीतिक व्यवस्था और फिर चाहे वह अर्थ व्यवस्था हो मूलभूत नैतिक सिद्धांतों से उसका परे होना किसी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होना चाहिये। सफलता के नाम पर जिसके प्रतिमान जिसकी लाठी उसकी भैंस से प्रेरित हों लोगों को भ्रमित करना अंततोगत्वा बेहद कड़वे परिणाम देता है।
नई अर्थ व्यवस्था जिसमें वायदा बाजार वस्तुओं की कीमत में उतार चढ़ाव में सबसे मुख्य भूमिका अदा करता है और जो एक शुद्ध सट्टा है किसी भी नैतिक धर्म से जायज नहीं ठहराया जा सकता। इसी तरह अपरिग्रह के शाश्वत आध्यात्मिक सिद्धांत की अवहेलना कर उपभोग वाद को रोजगार सृजन और विकास दर बढ़ाने का चमत्कारी मंत्र मानना भी नैतिक संहिता के विरुद्ध है लेकिन अगर अभी हम नैतिक कसौटियों पर नई आर्थिक नीति को परखने की बात छोड़ दें। यह देखें कि मुक्त बाजार की आर्थिक नीति की सफलता के लिये व्यवस्था में क्या बुनियादी विशेषतायें होनी चाहिये तो अपनी नाकामियों के कारण हमें आसानी से पता चल सकते हैं। उपभोग वादी समाज ही आधुनिक समाज का पर्याय है। आधुनिक समाज में सबसे बड़ी विशेषता होती है मजबूत गवर्नेंस। जितने भी विकसित देश हैं उनमें गवर्नेंस की गुणवत्ता का स्तर बेहद उत्कृष्ट है। इस कारण वहां प्रशासन में पूरा अनुशासन नजर आता है।
उपभोक्ता के अधिकारों को बहुत मान्यता दी जाती है। वहां ट्रेन में रिजर्वेशन के लिये सुविधा शुल्क देने की जरूरत नहीं पड़ती। किसान का फर्जी क्रेडिट कार्ड बनाकर उसके नाम से कर्जा निकालने का चमत्कार वहां नहीं हो सकता। न्यूयार्क में जब अपराध बढऩे लगते हैं तो जीरो टोलरेंस अभियान चलता है इसमें छोटे से छोटा वो अपराध जिसके लिये दंडित कराने को भारतीय पुलिस कभी अपना समय और प्रतिभा बरबाद करने को तैयार नहीं हो सकती। वहां उसके लिये पूरा गौर किया जाता है। छोटी सी गलती पर भी अनिवार्य रूप से कार्रवाई की जाती है। धारणा यह रहती है कि 95 प्रतिशत लोग अपराधी नहीं होते और व्यवस्था प्रिय होते हैं। अगर उन्हें छोटी सी अवहेलना की गुंजाइश न दिखे तो वे कभी कोई कानून नहीं तोड़ेंगे तब पुलिस को केवल उन 5 प्रतिशत लोगों को ही देखना होगा। जो मानसिकता से अपराधी हैं और तब ओवर लोड न होने से उनका दमन करने की जिम्मेदारी पुलिस आसानी से निभा लेगी। उन्नत देशों में इसी कारण शहरों में ट्रैफिक नियमन को बहुत गंभीरता से लिया जाता है। अगर आपकी गाड़ी गलत पार्क हो गई तो चालान सुनिश्चित है भले ही आप कितने प्रभावशाली क्यों न हों। इससे आज्ञाकारी नागरिक समाज बनता है।
इस कारण बाजार और पूंजी निवेश का बेहतर माहौल वहां स्थायी हो चुका है। हमारे देश में तो गवर्नेस नाम की कोई चीज ही नहीं बची है। अराजकता के माहौल में उदार अर्थ व्यवस्था का यहां कोई भविष्य नहीं है। अभी शुरुआती दौर था तो कुछ अच्छा भी दिखा लेकिन अब हालात बेहद खराब ही होते जायेंगे। ऐसे में देश पतन की कितनी गहराई में चला जाये इसका कुछ अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
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