मेरे ब्लॉग का यह शीर्षक शायद आपको चौंका रहा होगा लेकिन समाजवादी आंदोलन के खास तौर से उत्तर प्रदेश के संदर्भ में अध्ययन का आने वाले समय में यह एक महत्वपूर्ण कोण होगा। अखिलेश यादव की सरकार ने लोहिया ग्राम विकास योजना का नाम बदलकर जनेश्वर मिश्र ग्राम विकास योजना कर दिया है। यह बदलाव यूं ही नहीं किया गया कई बार अचेतन में जो होता है उसकी अभिव्यक्ति क्रियाकलापों में सामने आ जाती है। समाजवादी आंदोलन ने लोहिया से जनेश्वर मिश्र तक कई पड़ाव तय किये हैं बावजूद इसके कि जनेश्वर जी ताउम्र छोटे लोहिया के नाम से महिमा मंडित होते रहे थे। एक लोहिया थे जिन्हें नेहरू जी बहुत चाहते थे जब वे विदेश से पढ़कर लौटे तो नेहरू जी ने उन्हें कांग्रेस के विदेश विभाग की जिम्मेदारी सौंपी। वही लोहिया आजादी के बाद नेहरू जी के सबसे बड़े विरोधी हो गये। तमाम अन्य बातों के अलावा नेहरू जी की नीतियों को लेकर उनका उज्र प्रमुखता से इस बात पर था कि वे इंदिरा गांधी को बढ़ावा देकर देश में वंशवाद की नींव डाल रहे हैं जो लोकतांत्रिक अवधारणा के खिलाफ है। हालांकि नेहरू जी ने इंदिरा जी को प्रधानमंत्री पद पर आसीन नहीं किया बल्कि उनके दिवंगत होने के बाद पहले लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और उनके न रहने पर यह जिम्मेदारी पार्टी ने इंदिरा जी को सौंपी थी। फिर भी लोहिया थे कि कभी नेहरू जी के वंशवाद का विरोध छोडऩे को तैयार नहीं हुये। जब वे नहीं रहे तो इंदिरा जी को भी उन्होंने वंशानुगत आधार पर सत्ता हथियाने का दोषी ठहराते हुये जीवन के अंतिम समय तक कठघरे में रखा। जाहिर है कि जितने लोहिया वादी थे समाजवाद के नाम पर उनका लक्ष्य था कि राजनीति में वंशवाद को किसी भी तरह नहीं पनपने देंगे लेकिन समय एक सा नहीं रहता तो विचारधारा भी अडिग नहीं रह पाती। समय के अनुकूल विचारधारा में बदलाव होना चाहिये। लोहिया जी शास्त्रीय संगीत थे जिसमें राग की शुद्धता का बड़ा महत्व है। उन्हें शुद्धता में मिलावट मंजूर नहीं थी जबकि जनेश्वर जी ने छोटे लोहिया कहलाते हुये भी अपने को उनकी लीक से हटकर सुगम संगीत के मानिंद साबित किया जो लोकप्रियता के लिये तमाम धुनें चुराकर उनके काकटेल से नयी धुन बनाने में परहेज नहीं रखता। इसी कारण जब समय बदला तो छोटे लोहिया ने असल लोहिया की जड़ता को एक किनारे कर मुलायम सिंह जी के बेहद लायक सुपुत्र परम आदरणीय श्री अखिलेश यादव जी के राजनीति में अïवतरण के लिये उनके द्वारा निकाली गयी पहली साइकिल यात्रा को हरी झंडी दिखाकर समाजवादी आंदोलन को नया रास्ता दिखाने का काम किया। हालांकि समाजवादी पार्टी अब तक लोहिया का नाम जाप कर रही है लेकिन अब उसे लोहिया की कट्टïरता से खतरा नजर आने लगा है और जनेश्वर जी के पहलू में पहुंचकर उसे इस खतरे से अभय का सुकून मिलता है। आदरणीय जनेश्वर जी जिंदा होते तो मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, शिवपाल यादव और उसके बाद धर्मेंद्र यादव से लेकर डिंपल यादव तक एक ही वंश में हुनरमंदों की खान देखकर यह प्रमाण पत्र देना पड़ता कि जब सारे रत्न ऊपर वाला एक खानदान में पैदा कर रहा है तो जनता जनार्दन को कहीं और भटकने की जरूरत क्या है? इस कारण आज समाजवादी आंदोलन को जरूरत लोहिया जी की नहीं जनेश्वर जी की है। वैसे मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद सवर्ण लड़कों से बातचीत करने के लिये तत्कालीन कैबिनेट की जो समिति बनी थी उसके अध्यक्ष जनेश्वर जी ही थे पर रातोंरात उनका हृदय परिवर्तन निश्चित रूप से बिना किसी लालच के हुआ और उनका वह विचलन अंततोगत्वा उनकी यश गाथा को समृद्ध कर उन्हें युग पुरुष का दर्जा दिलाने में कामयाब रहा जो आज लोहिया जी के नाम की योजना का नाम बदलकर उनके नाम पर किये जाने से परिलक्षित हो रहा है। एक और धुरंधर समाजवादी को भी देर सबेर ऐसा इनाम मिलना था लेकिन वे चूक गये। फिर भी मैं उनका नाम लेना चाहूंगा ताकि भविष्य में अगर अपनी गलती में सुधार कर वे कोई अच्छा मुकाम पा जायें तो आप मुझे एक अदने ब्लॉग लेखक के साथ-साथ महान ज्योतिषी के रूप में भी याद रखें। यह सज्जन हैं परम आदरणीय मोहन सिंह जो समाजवादी आंदोलन के संकल्पों को साकार करने का महान लक्ष्य लेकर मुलायम सिंह के साथ आये थे जबकि मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने के दौरान समाजवादी आंदोलन में हुयी उथल-पुथल में उनका नजरिया कुछ और था। किशन पटनायक जी अब रहे नहीं हैं। मेरा संयोग है कि मेरे फेसबुक पर आदरणीय रघु ठाकुर जी हैं। कृपया वे मेरे इन उद्गारों को पढऩे का कष्टï अवश्य करें।
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