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आईएएस प्रतिभा का शैतानी इस्तेमाल

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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आंध्र प्रदेश के एक मुंहजोर मंत्री ने आईएएस अधिकारियों के लिए कहा कि उन्हें गोली मार देना चाहिए, बयान को लेकर संभ्रांत वर्ग की प्याली में तूफान की स्थिति रही। मंत्री को ऐसा बयान जारी करने के लिए लताड़ा गया। बहरहाल भले मानुषों को जैसा भी लगा हो, लेकिन आम लोग तो इस बयान पर बेहद खुश हुए जैसे किसी ने उनके मन की बात कह दी हो।

रमजान का महीना चल रहा है। ऐसे में रोजेदारों को सबसे ज्यादा आगाह किया जाता है कि वे इबलीस यानी शैतान के बहकावे से सावधान रहें वरना उनका सारा शवाब जाता रहेगा। लगता है कि आईएएस की तैयारी के समय ही पढ़ाई में इबलीस की गुमराह करने वाली प्रेरणाएं जुड़ जाती हैं वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि जो समुदाय में सबसे अधिक प्रतिभाशाली है वे समाज की बेहतरी की एक प्रतिशत भी चिंता करने के बजाय बर्बर और असभ्य लोगों की तरह केवल अपने अहंकार और स्वार्थपोषण के लिए समर्पित हो जाएं। जहां तक सामाजिक सरोकारों या राष्ट्रीय हितों का प्रश्न है, इतने तो बेगाने आईएएस के पूर्वज अंग्रेज आईसीएस अफसर भी नहीं थे। वे घोषित रूप से देश और लोगों के साथ अपने उपनिवेशवादी व्यवहार का औचित्य ठहराते थे, लेकिन उन्होंने अपने समय में जो व्यवस्थाएं बनाईं उनसे यह जाहिर होता है कि वे व्यक्त रूप से कितने भी प्रगल्भ रहे हों, लेकिन उन्होंने देश को शानदार व्यवस्था देने के अपने कर्तव्य से कभी मुंह नहीं मोड़ा।

वर्तमान आईएएस विदेशी नहीं हैं बल्कि पूरे भारतीय समाज को आईएएस अधिकारियों पर गर्व होता कि हमारे बीच से भी प्रशासनिक क्षमताओं और मानवीय गुणों से भरपूर लोग पैदा होते हैं बल्कि दुनिया में इस मामले में सबसे ज्यादा आलातरीन प्रतिभाएं हमारे यहां होती हैं। भारतीय समाज में एक बच्चा जब होश संभालता है तो मंदिरमस्जिद या गुरुद्वारे में प्रार्थना के समय ऊपर वाले से अपने लिए असीम बुद्धिमत्ता या अदम्य पराक्रम अथवा सारे संसार की सम्पन्नता का वरदान इसलिए मांगता है ताकि अगर यह नेमतें उसे हासिल हो जाएं तो इनके जरिए वह लोगों की सेवा औरों से ज्यादा बेहतर तरीके से कर सके या मानवीय धरातल पर उत्कृष्टतम समाज के निर्माण का मॉडल प्रस्तुत कर सके। इस तरह की सद्इच्छाएं मानव का मौलिक गुण हैं। एकदो प्रतिशत लोग जो पैदाइशी तौर पर इबलीस का अंश रखते हैं वही इस तरह की सद्इच्छा से परे होते हैं और ज्ञानी तो तभी ज्ञानी माना ही जाता है जब उसमें रचनात्मक आकांक्षाएं हों। एकदो आईएएस अधिकारी अगर इनसे परे हो, लेकिन ९० प्रतिशत इबलीस की ही प्रवृत्ति के हैं तब तो पूरे संवर्ग में खोट मानना लाजिमी हो जाता है

आम आदमी भी अपने दैनिक जीवन में इस बात को जान चुका है कि आईएएस अधिकारी जिस जिले में कलक्टर बनते हैं वहां दस साल भी लगातार बने रह लें तो यह मालूम नहीं कर सकते कि उनके जिले में सबसे अच्छा कवि कौन हैसबसे अच्छा शिक्षक कौन है, सबसे अच्छा समाजसेवी कौन हैलेकिन इस बात को वे ज्वाइनिंग करने के अगले दिन ही जान जाते हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी के राजधानी में बैठे शीर्ष नेताओं से जिले के किन लोगों की नजदीकियां हैं। वे निहायत फूहड़ बात करते होंगुंडों को पोषते होंरुपए लेकर लाइसेंस बनवाते हों तब भी आईएएस अधिकारी उनके प्रति श्रद्धा से नतमस्तक होगायह संवर्ग अपने नाते भारतीय नौकरशाही को स्टील फ्रेम घोषित करता हैलेकिन वास्तविकता यह है कि पूर्व की स्थिति कुछ भी रही हो पर आज आईएएस पीढ़ी पर कानून के शासन के लिए स्टील फ्रेम के रूप में विश्वास करना अपने आपको बहुत बड़े मुगालते में रखने की तरह है।

सचिवों का काम मंत्रियों और मुख्यमंत्री को केवल यह सिखाना रह गया है कि नियम और कानूनों को लंगड़ा करके किस तरह दोनों मिलकर अपना घर भर सकते हैं। राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए यह किसी भी रूल्स हैंडबुक को अंगूठा दिखाने के लिए तैयार हैं। नियमों के लिए मुख्यमंत्री या मंत्रियों के मनमाने आदेश काक प्रतिवाद करने की दृढ़ता दिखाने वाले आईएएस अब ढूंढे नहीं मिल सकते। इनको जितनी असीम शक्तियां दी गई हैं अगर उनका रंचमात्र भी ईमानदारी से पालन करें तो सरकार की सारी नीतियां कामयाब नजर आ सकती हैं पर इन्हें उन नीतियों से कोई लगाव नहीं है। दखल इनका सब जगह है, जवाबदेही कहीं नहीं।

आज से डेढ़ दशक पहले जालौन जिले के कोंच तहसील की हवालात में एक ७० वर्षीय वृद्ध की मौत हो गई थी। उसे मात्र पांच हजार रुपए की बकायेदारी वसूल न हो पाने की वजह से जलती हुई गर्मी के मौसम में तहसील हवालात की तंग कोठरी में धकेल दिया गया था, जिसमें न रोशनी आती थी न हवापानी का भी कोई इंतजाम नहीं था। वृद्ध की मौत के बाद मानवाधिकार आयोग ने बड़ी गम्भीरता से इसे संज्ञान में लिया। छोटे अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई हुईलेकिन उस कलक्टर का कुछ नहीं बिगड़ा जिसने १५ दिन पहले ही तहसील का निरीक्षण किया था और उस दौरान हवालात को भी देखा था। उसकी आंखों पर हवालात की दशा देखते समय पट्टी बंध गई थी। अगर सबसे बड़ा अधिकारी इतना गैर जिम्मेदार हो तो सबसे पहले और सबसे ज्यादा कार्रवाई उस पर होनी चाहिए पर चूंकि आईएएस अधिकारी किसी भी प्रताड़ना से परे हैं, जिसकी वजह से मानवाधिकार आयोग भी उस कलक्टर के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा सका।

आईएएस अधिकारियों के प्रति मेरी यह वितृष्णा किसी वर्ग विशेष के प्रति घृणा की वजह से नहीं है। बस मुझे तो यह लगता है कि अगर इस सेवा का नाम बदल जाए तो ज्ञानियों यानी प्रतिभाशाली लोगों की जो फितरत है उसके अनुरूप यही लोग सबसे खुशहाल समाज बनाने के लिए भूमिका निभा सकेंगे। मुझे तो आईएएस अधिकारियों पर उनकी मेधा के नाते बड़ी आस्था हैइसीलिए उनके द्वारा किए जा रहे उलटे कार्य और इस नाते हो रही उनकी आलोचना बर्दाश्त नहीं हो रही। ऐसी बौद्धिक ऊर्जा विध्वंस की बजाय निर्माण में लगे तो देश का कायापलट हो जाए। आंध्र के जिस मंत्री ने आईएएस अधिकारियों को गोली मारने की बात कहीउसका भी आशय इसे वास्तव में चरितार्थ करना नहीं रहा होगा। वह भी मेरी ही तरह ज्ञानियों को विपथगामी होता देख विचलित होकर झल्लाहट में यह कह बैठा। पर झल्लाहट कटु से कटु शब्दों मे ही सामने आनी चाहिए ताकि आईएएस संवर्ग की आत्मा जाग सके और समाज उनसे जिस भूमिका की आशा करता है वे उसे निभाने को तत्पर हो सकें।

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