Menu
blogid : 11678 postid : 107

कबूतरा डेरा के नौनिहाल बनेंगे ‘साहब’

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
  • 100 Posts
  • 458 Comments

08ori-22
घर में होमवर्क करते कबूतरा समुदाय के बच्चे।

हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास ‘अल्मा कबूतरी के जरिये कबूतरा समुदाय से अब सारा देश परिचित हो चुका है। पीढिय़ों से अवैध शराब बनाकर बेचने का धंधा करने वाले इस समुदाय के लोग कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखते थे लेकिन मुखियायिन को अचानक एक दिन बोधि ज्ञान जैसा हुआ। कांशीराम कालोनी के पास लगभग 50 घरों की आबादी वाले कबूतरा डेरा में आज कोई ऐसा बच्चा नहीं है जो स्कूल न जा रहा हो।

होनहान छात्र बलराम।
होनहान छात्र बलराम।

मुखियायिन का बेटा बलराम महर्षि विद्या मंदिर में 6वीं के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों में गिना जाता है। वह गर्व से कहता है ‘बड़ा होकर इंजीनियर बनना चाहता हूं ताकि पूरे परिवार को शराब के धंधे से बाहर निकाल सकूं।

सड़क से यह बस्ती लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर है, खाली खेतों से होकर डेरे के लिए रास्ता जाता है लेकिन बरसात में यह सारा इलाका पानी से भर जाता है। मैं अपने साथियों के साथ यहां किसी तरह पहुंचा लेकिन विनीता, अनिल, संतोष आदि बच्चों को खेलते कूदते हुए बैग लादे स्कूल से लौटते देखा तो अभिभूत होकर हम लोग सारी परेशानी भूल गये। मुखियायिन किन्नाबाई ने कहा कि उनके बच्चे कैसा भी मौसम हो स्कूल जाने में आनाकानी नहीं करते। बलराम ने बताया कि नर्सरी क्लास में ही महर्षि विद्यालय में उसका एडमीशन करा दिया गया था। एडमीशन के समय कोई परेशानी नहीं हुयी बल्कि प्रधानाचार्य एके सिंह ने उसकी मां से कहा कि आप लोग अपने बच्चों को पढ़ाने की सोचने लगे हैं यह मेरे लिए खुशी की बात है।

होमवर्क करते कबूतरा डेरा के बच्चे।
होमवर्क करते कबूतरा डेरा के बच्चे।

कृष्णा के तीनों बच्चे मनीष कुमार, राहुल और आशिक रवींद्र नाथ टैगोर स्कूल में पढ़ते हैं। वे कुछ देर पहले आ गये थे और ड्रेस उतारने के बाद मनोयोग से होमवर्क निपटाने में लगे थे। शिमला और प्रतिज्ञा ने बताया कि मुखियायिन की जबर्दस्ती से हम सबको अपने बच्चे स्कूल में दाखिल कराने पड़े हैं जबकि आज तक उनको बच्चों को वजीफा भी नहीं मिला। यहां तक कि लड़कियों को भी स्कूल भेजने में कोई कोताही नहीं होने दी जा रही। मुखियायिन खुद बिना पढ़ी लिखी हैं।

उन्होंने बताया कि उनके पूरे डेरे में उनकी पीढ़ी तक किसी को अक्षर ज्ञान भी नहीं था। शराब बेचना ही नहीं चोरी और लूटमार करना भी हमारा पुश्तैनी पेशा जैसा था। अब बच्चे स्कूल जाने लगे हैं तो जरायम से हमने दूरी बना ली है, लगता है कि अगर चोरी चकारी में पकड़े गये तो बच्चे को स्कूल से निकाल दिया जायेगा, अपनी संतानों को साहब बनाने का सपना फिर कैसे पूरा होगा। मुखियायिन को अंदाजा नहीं है कि वे जरूरतमंद समुदाय में पढ़ाई लिखाई की अलख जगाकर सार्थक शैक्षणिक क्रांति को अंजाम दे रही हैं। दूसरी ओर स्कूल चलो रैली निकालने का भारी भरकम बजट होते हुए भी बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कबूतरा डेरा तक आने की जहमत अभी नहीं उठायी है, मुखियायिन को सम्मानित करने की बात तो सोचना दूर है।

आबकारी निरीक्षक संजय कुमार पढऩे वाले बच्चों को उत्साहित करते साथ में बैठीं मुखियायिन।
आबकारी निरीक्षक संजय कुमार पढऩे वाले बच्चों को उत्साहित करते साथ में बैठीं मुखियायिन।

दूसरी ओर आबकारी विभाग के निरीक्षक संजय कुमार जो कई बार इस डेरे पर दबिश देकर भट्टिïयां तोड़कर लेहन फैलाने और शराब बनाने वाली महिलाओं को पकडऩे की कार्रवाई कर चुके हैं अपना मानवीय फर्ज निभाते हुए उनके पढऩे वाले बच्चों की खोज खबर लेने और उत्साहवर्धन करने के लिए आते रहते हैं। संजय कुमार ने कहा कि बलराम जैसे बच्चों के लिए यहां से स्थानांतरण के बाद भी उनसे जो संभव हो सकेगा वे करते रहेंगे।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply