राष्ट्रपति चुनाव के समय जब मैंने चौधरी रामसेवक के बारे में लिखा था कि अगर जालौन जिले के लोग व्यक्तिगत सरोकारों से किसी के व्यक्तित्व को आंकने की संकीर्णता से परे हो गए होते तो चौधरी रामसेवक देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होने का गौरव कभी के हासिल कर चुके होते। इससे न केवल रामसेवक जी का यश बढ़ता बल्कि जालौन जिले की भी धाक राजनीति में राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हो जाती।
उस समय मुझे यह अहसास नहीं था कि चौधरी साहब का जीवन अवसान की ओर है। अंतिम क्षणों में जिले के लोगों की उनके प्रति जो चूक रही उसका स्मरण और प्रायश्चित कर मैं अनजाने में उन्हें संसार से सुकून के साथ विदा करने का निमित्त बन गया। चौधरी रामसेवक मेरी पीढ़ी के बहुत पहले के स्थापित नेता थे।
इसके बावजूद जब मेरी उनसे राजनीतिक चर्चाएं शुरू हुईं तो उन्होंने मुझे बेहद महत्व दिया। कई फैसले जो वे लेना चाहते थे उनको तौलने के लिए मेरी राय जानने की अहमियत उन्होंने समझी। हालांकि चौधरी साहब महत्वाकांक्षा रखते हुए भी कभी अकुलाहट में नहीं आए, जिसके कारण चाहते हुए भी वे कोई असाधारण फैसला अपने अगले राजनीतिक पड़ाव के लिए नहीं ले सके। जीवन के अंतिम दौर में वे गुमनामी के अंधेरे में चले गए थे। इसकी मुख्य वजह उनका यथास्थितिवादी स्वभाव ही था फिर भी वे जालौन जिले की शान थे। एक दिन जिले के लोगों को उनकी रिक्तता का अनुभव जरूर होगा। चौधरी रामसेवक को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
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चौधरी रामसेवक पर पूर्व में लिखे गए लेख का लिंक—जो उनके देहावसान से पहले लिखा था।
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