हवा पानी के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसके बावजूद पानी से जुड़ी परियोजनाओं के साथ भी खिलवाड़ होता है जो विडंबना का विषय है। सरकारी तंत्र के इसी रवैये की वजह से चरमोत्कर्ष प्रगति के इस युग में भी लोगों को स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति का संकल्प सफल नहीं हो पा रहा। नयी-नयी योजनायें बनती रहती हैं जबकि अधूरी रह गयी पिछली योजनाओं को भगवान के भरोसे छोड़ दिया जाता है। इसका उदाहरण है जालौन जिले के अत्यधिक समस्याग्रस्त परासन गांव में सन् 2001 में विश्व बैंक पोषित स्वजल परियोजना का हश्र। 1995 में विश्व बैंक ने 1000 गांवों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में स्वजल योजना की शुरूआत की थी जिसमें जालौन जिले के 114 गांव शामिल थे। परासन इसके सबसे अंतिम चरण में शामिल किया गया। यह ग्राम समूह स्वजल योजना थी जिसके जरिये परासन के अलावा इमिलिया और दशहरी गांवों में भी पाइप लाइनों से आपूर्ति की जानी थी। परियोजना लागत 1 करोड़ 12 लाख रुपये तय की गयी थी। पहले अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कंसलटेंसी फर्म डीएचवी कंपनी को यह काम सौंपा गया। उन्हें 18 महीने में ग्रामीणों से अंशदान वसूल कर जमा कराना था लेकिन कंपनी यह कार्य निश्चित समय में पूरा नहीं कर पायी। इसके बाद परियोजना पूरा कराने का दायित्व परमार्थ नाम के एक एनजीओ को सौंप दिया गया। इस संस्थान ने ग्रामीणों से छह लाख रुपये अंशदान जमा कराया। इसी बीच विश्व बैंक को योजना के संचालन की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया। विश्व बैंक ने जाते-जाते पूरी योजना उत्तर प्रदेश सरकार के ग्राम विकास विभाग को संदर्भित कर दी। इस विभाग ने सिर्फ 39 लाख रुपये तीन किश्तों में अवमुक्त किये जिससे हरीशंकरी नामक स्थान पर 70 किलोलीटर की एक टंकी स्थापित कर दी गयी है। तीनों गांवों में लाइन बिछा दी गयी है। नलकूप के साथ-साथ 25 किलोवाट का जनरेटर भी उपलब्ध करा दिया गया है लेकिन बाद में धन न मिलने से यह योजना अवरुद्ध पड़ी है। इसी बीच परासन के पूर्व प्रधान सुनील सिंह शक्ति ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का काम कराते हुये परासन से हरीशंकरी तक पाइप लाइन को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया है। अब यह पाइप लाइन भी दुरुस्त होनी है। परासन की जल उपभोक्ता समिति के अध्यक्ष रामबिहारी प्रजापति पिछले सात सालों से अïवशेष बजट निर्गत कराने के लिये चक्कर काट रहे हैं। ग्राम विकास विभाग ने एक बार जल निगम से रिपोर्ट भी मांगी थी लेकिन फिर भी कोई मदद नहीं दी गयी। परियोजना को किफायती बनाते हुये अब इसे केवल परासन के लिये सीमित कर नया स्टीमेट बनाया गया जिसके मुताबिक पच्चीस लाख रुपये भी मिल जायें तो यह योजना संचालित हो सकती है पर ग्राम विकास विभाग इस ओर भी ध्यान नहीं दे रहा। यहां तक कि हरीशंकरी में खुदे नलकूप का बिजली कनेक्शन तक नहीं कराया जा रहा। इस बीच राजीव गांधी ग्रामीण पेयजल एवं स्वच्छता मिशन की लंबी चौड़ी कवायद हुयी लेकिन इस दौरान भी 1995 से 2002 तक विश्व बैंक पोषित स्वजल योजनाओं के पुनरुद्धार की सुध नहीं ली गयी। जालौन ब्लाक के जगतपुर अहीर गांव में भी कनेक्शन के अभाव में पेयजल आपूर्ति नहीं हो पा रही है। रखरखाव की कमी के कारण पाइप लाइनें भी क्षतिग्रस्त हो गयी हैं। कम लागत में यह योजना सुचारु हो सकती है लेकिन अधिकारी कमीशन के चक्कर में नया काम कराने में ज्यादा रुचि लेते हैं जिसकी वजह से किफायत उनके एजेंडे में नहीं है। बहरहाल उत्तर प्रदेश के स्मार्ट मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पेयजल सहित उन सभी बुनियादी सेवाओं से जुड़ी परियोजनाओं की समीक्षा करानी चाहिये जो कम संसाधनों में बहाल की जा सकती हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा गांवों की समस्यायें कम समय में हल हो सकेंगी अन्यथा संसाधनों के हिसाब से थोड़े-थोड़े गांव करके इन सुविधाओं को देने के लिये लंबा सिलसिला चलाना पड़ेगा। ऐसी हालत में बढ़ती जागरूकता की वजह से सरकार को जनअसंतोष का भी सामना करना पड़ सकता है। क्या अखिलेश सरकार इस ओर गौर करेगी?
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