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निहत्था जोगी बना बेतवा का रखवाला

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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बुंदेलखंड की जीवनधारा बेतवा नदी के अस्तित्व पर पत्थर माफिया ने हथौड़े चलाना शुरू किया, तो करुण गुहार सुनकर बुंदेली जीवट ने मोर्चा लेने का मन बनाया, लेकिन सामने खड़े पत्थर माफिया के आधुनिक हथियारों की चमक ने उसे सीधे हस्तक्षेप से रोक दिया। सरकार से गुहार भी काम नहीं आई। ऐसे विकट हालात में सामने आया एक जोगी, वह भी बिल्कुल निहत्था। पलक झपकते दर्जनों राउंड गोलियां उगलने वाले हथियारों का मुंह बंद करने के लिए इस साधु के पास शस्त्र था, तो सिर्फ मजबूत इरादा। छल-बाहुबल और नेक इरादों के बीच हुई इस जंग में जीत हुई नेक इरादों की।
जिंदगी के पचासवें पड़ाव को पार कर चुके धर्मदास को करीब ३७ साल पहले इलाके में लल्लन के नाम से पहचाना जाता था। १३ वर्ष की अवस्था में लल्लन अचानक वैरागी बनकर प्रह्लाद गुफा पहुंच गए, जहां कठोर तपस्या कर धर्मदास प्रभु के रूप में नया चोला धारण किया। धर्मदास प्रभु पूजा में भी हठयोग को वरीयता देने के कारण चर्चित रहे। इसी बीच क्रशर मालिकों ने कलकल बहती नदी बेतवा के सौंदर्य को उजाड़ना शुरू किया। शुरुआत हुई मनोहारी सलाघाट से। यहां कोई सात किमी. का क्षेत्र पत्थर की अनूठी शिलाओं से अटा है। इन्हीं शिलाओं से बेतवा जब अठखेलियां करती है तो उठने वाली मचलती लहरों की तरंगें किसी भी मुरझाए दिल को बाग-बाग कर देती हैं।
१३ साल पहले इस घाट के पत्थरों पर क्रशर मालिकों ने हथौड़े और कुदाल चलवाना शुरू किया, तो सलाघाट के इस पार आबाद जनपद जालौन के गांव और दूसरे पाट पर बसे झांसी के गांव-मजरे चीखने लगे। सहमे दिलों में हूक उठी कि क्रशर मालिकों के कहर से बेतवा की धारा बदली, तो जिंदगी पर मौत का झपट्टा तय है। लोगों ने जूझने का इरादा बनाया, लेकिन कदम नहीं बढ़े। इधर सलाघाट पर एक के बाद एक क्रशर लगते गए। ऐसे मुश्किल हालात में प्रकट हुए फक्कड़ धर्मदास ने अवैध खनन कराने वाले पत्थर माफिया को ललकारते हुए सलाघाट से दूर रहने को कहा। कुछेक ने हिदायत को अनसुना किया, तो निहत्थे जोगी ने हठयोग का सहारा लिया। कुदाल और हथौड़े के निशान पर शरीर रख दिया। जबर्दस्ती हुई तो तीखे शब्दवाण छोड़ने से परहेज नहीं किया। अकेले जोगी को लड़ते देखखर आसपास के गांव वाले भी उनके पीछे खड़े हो गए। जनसमूह का सहारा मिला तो धर्मदास ने बेतवा के सौंदर्य को रौंदने पहुंची मलेशिया की एक कम्पनी से नदी किनारे के बड़े इलाके को समतल कराकर जागेश्वर धाम की नींव रखी और फिर इसे अवैध खनन रोकने की चौकी बना दिया।
जब विदेशी कम्पनी ने इस अहसान के बदले खनन करना चाहा तो धर्मदास ने उसे यहां से खदेड़ दिया। इसके बाद फिर किसी और कम्पनी की हिम्मत नहीं हुई जो बेतवा के सौंदर्य के साथ खिलवाड़ करती। आज स्थिति यह है कि आसपास के गांव वाले जागेश्वर धाम से बेतवा की रखवाली करते हैं। उनके इस कदम से क्षेत्र में पर्यावरण के प्रति लोगों की जागरूकता भी बढ़ी है। कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव पीके मिश्रा को जिले के भ्रमण के दौरान सलाघाट के अस्तित्व पर पत्थर माफिया की वजह से मंडराते खतरे की जानकारी मिली थी। इसके बाद उन्होंने केंद्र सरकार को सिफारिश भेजते हुए इस इलाके को वेटलैंड डेवलपमेंट योजना में शामिल करने को कहा था। हालांकि इस प्रस्ताव पर सार्थक पहल अब तक नहीं हो पाई है।

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