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जालौन जिले में एट के पास धुरट में सौ वर्ष पहले लगाया गया केवड़े का बाग आज भी महक रहा है। मानस संगम के वार्षिक आयोजन के रूप में अब यह आध्यात्मिक खुशबू बिखेरने का भी कारण बन गया है।
धुरट में पांच एकड़ क्षेत्रफल में केवड़े का बाग अपने आप में चमत्कार है। पूरे बुंदेलखंड की तरह जालौन जिला भी शुष्क इलाके में शुमार है जबकि केवड़ा के लिये स्थायी नमी चाहिये। धुरट और आसपास के इलाके की विशेषता इस मामले में जिले की सामान्य फितरत से अलग है। यहां जगह-जगह जमीन से झरने फूटते रहते हैं। स्व. पहलवान सिंह के बाग के पास तो सदानीरा कुंड है जहां लोगों ने हनुमान जी का मंदिर स्थापित करा दिया है। गर्मी में भी यह कुंड भरा रहता है। इसका अविरल जलस्रोत बहता ही रहता है। पहलवान सिंह के खेत में भी इस कारण स्थायी जलभराव रहता था। वे शौकीन जमींदार थे। एक दिन उन्होंने बाहर से लाकर केवड़ा की दो-तीन पौध यहां रोप दीं। इससे खेत में ‘नौना’ तो बचा ही केवड़े को यहां की धरती का मौसम ऐसा रास आया कि देखते-देखते पूरे खेत में केवड़ा छा गया। पहलवान सिंह द्वारा आयोजित करायी जाने वाली रामलीला की भी दूर-दूर तक बड़ी धूम थी। कलाकारों में जखौली के नजीर खां जब धुरट रुके तो उन्होंने शराब उतारने की तर्ज पर केवड़े के फूलों का अर्क निकाला। पहलवान सिंह को यह काफी पसंद आया। इस तरह अर्क निकालने के लिये अपने खेत के पास उन्होंने स्थायी रूप से भट्टी चढ़वा दी। बाद में उनके मित्र मोहन लाल गुप्ता कारोबार के स्तर पर अर्क निकालने लगे। पिछले कई वर्षों से कन्नौज के इत्र व्यापारी देवेंद्र द्विवेदी यहां सावन, भादों के महीने में डेरा जमा लेते हैं। गांव की लेबर से ही फूल तुड़वा कर आसवन प्रक्रिया के बाद चंदन के तेल में उसकी वाष्प घुलवा लेते हैं जिससे बेहतरीन इत्र तैयार होता है। पहलवान सिंह के पौत्र कृष्ण कुमार बताते हैं कि वे 10-15 ड्रम इत्र यहां से ले जाते हैं जिसकी हम लोग कोई कीमत नहीं लेते। पहले हमारा करार यह था कि वे करीब आधा लीटर इत्र की व्यवस्था हमारे लिये करेंगे लेकिन अब इत्र लेने की बजाय दीपावली के अवसर पर तीन दिन का विशाल मानस संगम यहां आयोजित कराने की जिम्मेदारी उनको सौंप दी गयी है। इससे गांव का वातावरण काफी सात्विक रहने लगा है।
उद्यान हो या वन विभाग किसी ने धुरट की खेती को संज्ञान में नहीं लिया अन्यथा पहलवान सिंह के खेत के अलावा इसका क्षेत्र और लोगों के खेतों तक भी बढ़ सकता था। मार्केटिंग की पद्धति सिखाई जाती तो संभव था कि किसानों को बेहद लाभकारी स्थितियां मिलतीं। फिलहाल इस गांव में अभी तो परंपरागत फसलें ही की जा रही हैं। प्रधान ने बताया कि पहलवान सिंह के आसपास की जमीन पर भूमिहीनों को पट्टे कर दिये गये थे जो अन्ना पशुओं के कारण खेती नहीं कर पा रहे हैं।
कुछ समय पूर्व तत्कालीन जिलाधिकारी सौरभ बाबू ने यहां के अक्षय कुंड की जानकारी मिलने पर गांव में गोष्ठी आयोजित करायी थी जिसके बाद यहां के पानी को बहकर बर्बाद होने से बचाने के लिये नौ चेकडैम बनाये गये। किसानों का कहना है कि इससे सिंचाई की सुविधा हो जाने के कारण उन्हें काफी मदद मिली है।
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