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लालबुझक्कड़ों की जांच से हो रहा इलाज

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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जालौन जिले में पैथालाजी सेंटर के नाम पर मरीजों के साथ जमकर छल हो रहा है। इस क्षेत्र में लालबुझक्कड़ों का राज है जो न केवल उनकी जेब खाली करा रहे हैं बल्कि उन्हें मौत के मुंह में पहुंचाने का काम भी कर रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग इन पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा। जटिल रोगों की पहचान के लिए पैथोलाजी टेस्ट कराने की जरूरत पड़ती है जबकि डाक्टर कमीशन के चक्कर में अब जुकाम तक के मरीज का पैथोलॉजिकल टेस्ट कराने लगे हैं। इसके चलते कुटीर उद्योग की तरह हर गांव गली में पैथोलाजी सेंटर खुल गये हैं। पैथोलाजी सेंटर के लाइसेंस के लिए एमबीबीएस डाक्टर और डिप्लोमा होल्डर लैब टेक्नीशियन की जरूरत पड़ती है।

जालौन में एक ऐसे सेंटर को लाइसेंस दे दिया गया है जिसमें संबद्ध बताये जा रहे डाक्टर झांसी में संविदा पर सरकारी अस्पताल में नियुक्त हैं। माधौगढ़ तहसील में जिस एमबीबीएस डाक्टर के नाम पर जांच रिपोर्ट तैयार की जाती है वह झांसी में कार्यरत हैं। पैथालाजी लैब के पैड पर उनके कोरे हस्ताक्षर के कई पन्ने कभी भी पकड़े जा सकते हैं।

पैथोलाजी सेंटर पर ऐसे नौसिखिये जांच रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं जिन्हें संबंधित जांच जैसे डीएलसी, टीएलसी, ईएसपी आदि का फुल फार्म तक नहीं पता। पैथोलाजी टेस्ट के लिए सेंटर पर लैब को सुसज्जित करने के लिए जांच के अत्याधुनिक उपकरण, वातानुकूलित कमरे, एनालाइजर, सेल सेंटर, कैलोरी मीटर व इन्क्वावेटर की व्यवस्था होना चाहिए जबकि जिले में 50 प्रतिशत सेंटरों पर इन सुविधाओं का अभाव है। कई सेंटर तो देखने में परचून की दुकान लगते हैं। हर जांच के लिए अब सस्ती चायना किट बाजार में उपलब्ध है। एचआईवी तक की जांच 45 रुपए की चायना किट से करके 420 रुपए वसूल लिये जाते हैं। स्वयं मुख्य चिकित्साधिकारी स्वीकारते हैं कि चायना किट से सटीक जांच नहीं हो सकती लेकिन इस पर रोक लगाने का उन्हें कोई अधिकार न होने की बात कही।

डाक्टर जो मरीज के लिए भगवान का रूप कहा जाता है अपनी गरिमा को भूलकर 50 प्रतिशत कमीशन के चक्कर में बराये नाम पैथोलाजी सेंटर के नाम से चल रहे फर्जीवाड़े पर मरीज को जांच के लिए भिजवा देते हैं जहां नौसिखिये जांच रिपोर्ट तैयार करते हैं। डाक्टर इसी आधार पर रोग तय करके उसका निदान लिखना शुरू कर देते हैं। टीवी न हो लेकिन उसकी गर्म दवाओं की डोज दी जाने लगती है। इनके रियेक्शन से कई बार मरीज मौत के मुंह में पहुंच जाते हैं।

निजी पैथोलाजी सेंटर किसी सरकारी अस्पताल के सामने नहीं खोला जा सकता लेकिन जिला मुख्यालय तक पर इसका उल्लंघन हो रहा है। हर जगह सरकारी अस्पतालों के सामने खुले इन पैथालोजी सेंटर में अन्य अनियमितताओं की भी भरमार होती है लेकिन तो भी इनके विरुद्ध कार्रवाई नहीं होती। यही नहीं सरकारी अस्पतालों के लैब टेक्नीशियन को अस्पताल में तो टेस्ट 2-3 दिन में भी कर पाने की फुर्सत नहीं रहती लेकिन निजी क्लीनिक पर वे पूरे मनोयोग से ड्यूटी देते हैं। मुख्य चिकित्साधिकारी कहते हैं कि प्राइवेट नर्सिंग होम में सरकारी लैब टेक्नीशियन काम नहीं कर सकता। ऐसा करते पकड़ा गया तो सख्त कार्रवाई हो सकती है।

जालौन में एक कमरे में संचालित हो रहे एक पैरा मेडिकल कालेज की वैधता को लेकर यहां का स्वास्थ्य महकमा तक अनभिज्ञ है। जाहिर है कि ऐसे पैरा मेडिकल संस्थानों से डिप्लोमा लेकर निकल रहे लैब टेक्नीशियन निजी पैथोलाजी सेंटर में जांच करते हैं तो वह कितनी विश्वसनीय होगी। सीएमओ ने बताया कि पैरा मेडिकल कालेज को मान्यता वैसे तो निदेशालय स्तर से मिलती है लेकिन सीएमओ कार्यालय में इसकी सूचना होनी चाहिए। उन्हें जालौन में किसी मान्यता प्राप्त पैरा मेडिकल कालेज की जानकारी नहीं है। एक कमरे में पैरा मेडिकल कालेज का संचालन हो भी नहीं सकता। वे स्वयं निरीक्षण कर वस्तु स्थिति का पता करेंगे। पैथोलाजी सेंटर में इतनी अनियमितताओं की भरमार के बावजूद प्रभावी कार्रवाई के नाम पर आंकड़ा शून्य है। सीएमओ ने बताया कि पिछले तीन सालों में 5 पैथोलाजी सेंटरों को कारण बताओ नोटिस जारी किये गये हैं। उरई में अंबेडकर मार्केट स्थित एक पैथोलाजी सेंटर को तो 10 दिन पहले ही नोटिस दिया गया था। ध्यान रहे कि अनियमितता मिलने पर सेंटर का लाइसेंस निरस्त कर एफआईआर करायी जानी चाहिए लेकिन ऐसा एक भी मामले में नहीं हुआ।

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