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हिंदी की डूबती नब्ज को थामने वाले डाक्टर

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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तकनीकी और व्यवसायिक क्षेत्र में अंग्रेजी के प्रभुत्व के कारण बदलते दौर में हिंदी के लिए अस्तित्व का संकट और गहरा होता जा रहा है। इन क्षेत्रों में साहित्यकला जैसी सर्जनात्मकता के लिए कोई गुंजाइश नहीं है जिससे हिंदी की नाव और डांवाडोल है। बुंदेलखंड के जालौन जिले में चिकित्सा पेशे से जुड़े होने के बावजूद कविता लिखने वाले स्थापित डाक्टर इस मामले में अपवाद हैं। कविता लिखने के उनके जैसे डाक्टरों के चाव के कारण हिंदी की डूबती नब्ज को थामने का डूबते को तिनके जैसा सहारा मिल रहा है।

डॉ. रेनू चंद्रा।
डॉ. रेनू चंद्रा।

महिला चिकित्सक ड़ॉ.

अछूता रहता है लेकिन डारेनू ने छात्र जीवन से ही इतनी अच्छी रचनायें लिखनी शुरू कर दी थीं कि सारिकानवनीत और कादम्बिनी जैसी अपने जमाने की प्रसिद्ध पत्रिकाओं में उन्हें स्थान मिला और दिग्गज समीक्षकों न उनके शब्द शिल्प और अभिव्यंजना को सराहा। महादेवी काव्य का अभिनव मूल्यांकनहिंदी गजल पंचशतीऔर गजल दुष्यंत के बादके उपरांत उनके नये काव्य संग्रह मनकहीने साहित्यिक क्षितिज पर धूम मचा दी है। इसमें उनकी एक रचना है श्वास तुम जानो जीप्रश्वास तुम्ही जानो जीहै तुम्ही पर विश्वासतुम्ही जानो जीअपने शब्द शिल्प से हिंदी के वैभव को उन्होंने बढ़ाया है जिससे मातृभाषा के आकर्षण में बड़ा योगदान हुआ है।

डॉ. खेमचंद्र।
डॉ. खेमचंद्र।


जिला अस्पताल के वरिष्ठचिकित्साधीक्षक

खेमचंद्र वर्मा सरकारी व्यस्तताओं के बावजूद कविता और सामाजिक विषयों पर लेख लिखते हैं। कबीर के दर्शन पर उनका अच्छा अधिकार है। उन्होंने हिंदी के शब्द कौशल को मांजने में यथासंभव परिश्रम किया है लेकिन उन्हें अफसोस है कि वे शब्दों की जादूगरी में पूरी तरह माहिर न होने की वजह से चिकित्सा शास्त्र की हिंदी में प्रांजल पारिभाषिक शब्दावली विकसित करने में वे व्यक्तिगत योगदान नहीं दे पा रहे। अलबत्ता चिकित्सा क्षेत्र में हिंदी में लिखी गयी पुस्तकों का इंतजार उन्हें रहता है जिन्हें जिला अस्पताल की लाइब्रेरी में रखवाया जा सके।

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