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रामराज्य को भी बदनामी से नहीं बख्शा खराब चिकित्सा प्रशासन ने

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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केपी सिंह।
केपी सिंह।

एलोपैथी चिकित्सा का जादू कई कारणों से अब टूटने लगा है। स्थापित डॉक्टर तक ज्यादा कमीशन देने वाले फार्मास्युटिकल कम्पनी की बेअसर या उलटा असर करने वाली दवाओं को लिखने में परहेज नहीं करते। इस पैथी में अब यह परम्परा सी बनती जा रही है कि पहले डॉक्टर पैथोलॉजिकल टेस्ट के बारे में लिखते हैं और इसके बाद उन्हें आधार बनाकर रोग की शिनाख्त मानते हुए दवाएं लिखी जाती हैं। इसमें भी कमीशन का धंधा है। चाइनीज किट से पैथोलॉजी सेंटरों पर जांचें हो रही हैं, जिनकी कोई विश्वसनीयता नहीं है पर यहां भी डॉक्टर खासा कमीशन मिलने से मजबूर हैं। जिसका जागरूकता का स्तर थोड़ा भी अच्छा है उसे एलोपैथी के इस मायाजाल की मालूमात है और वह ऐसी बीमारियों में जिनमें तत्काल ऑपरेशन या सर्जरी की जरूरत न हो वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की ओर भागने लगा है। इस बीच बाबा रामदेव के कारगर उत्पादों से आयुर्वेद का सिक्का एक बार फिर बाजार में चल निकला है। उनकी मांग अधिक होने से उन्हें आकर्षक पैकेजिंग के साथ मार्केट में लाने की शुरुआत हो गई है और उनकी कीमतों में पिछले पांच वर्षों में कई गुना बढ़ोत्तरी खुदखुद उनकी साख की पुष्टि करने वाली है।

बावजूद इसके सरकार इस ओर सोयी हुई नजर आती है। कई वर्ष पहले उत्तर प्रदेश में आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथी पद्धति के अस्पताल बनवाए गए थे जिनमें एनआरएचएम आने के बाद एक धेला भी खर्च करना बंद कर दिया गया। नतीजा यह है कि इन अस्पतालों में अब उल्लू बोल रहे हैं। दूसरी ओर एनआरएचएम के पैसे से अतिरिक्त पीएचसी के नाम पर गांवगांव में पैदा की गई एलोपैथी अस्पतालों की बाढ़ सरकारी पैसे की बर्बादी की कहानी कह रही है। जालौन जिले का ही उदाहरण लें तो अकेली रामपुरा पीएचसी के तहत कई न्यू पीएचसी स्थापित हुई हैं जिनमें जगम्मनपुरपतराहीनरौलनावर शामिल हैं। एमबीबीएस डॉक्टरों के अभाव में इनमें ताले तक नहीं खुल पा रहे। अभी १० वर्ष तक एमबीबीएस डॉक्टरों की पूर्ति भी मेडिकल कॉलेजों की हालत देखते हुए सम्भव नजर नहीं आ रही। एमडी डॉक्टरों के अभाव से विभागाध्यक्ष न मिलने के कारण तमाम मेडिकल कॉलेजों में कई फैकल्टी बंद हो चुकी हैं। साथ ही उरई जैसे नये मेडिकल कॉलेज चिकित्सा प्रोफेसर न मिलने से शुरू नहीं हो पा रहे। जाहिर है कि अगर एमबीबीएस की नई खेप नहीं आएगी तो इन अस्पतालों में ताले ही पड़े रहेंगे।

अपेक्षा यह थी कि इन स्थितियों से सबक लेकर सरकार एलोपैथी के नाम पर घर फूंक तमाशा देखने की बजाय सारी अतिरिक्त पीएचसी आयुर्वेदिक या अन्य वैकल्पिक पद्धतियों के अस्पताल में बदल देती। इन पद्धतियों के डॉक्टरों को एलोपैथिक फार्मेसिस्ट स्तर की सालछह महीने की ट्रेनिंग करा देती ताकि तात्कालिक ड्रेसिंग, सर्जरी और इंजेक्शन लगाने के लिए भी इनकी पात्रता हो जाती और छोटीमोटी एलोपैथी दवाएं लिखने की भी। अन्य दीर्घकालीन मर्ज़ ये डॉक्टर अपनी पद्धतियों से करना शुरू करते तो चिकित्सा सुविधा गांवगांव तक फैलाने के ज्यादा सार्थक प्रयास हो सकते थे। साथ ही जिन एमबीबीएस डॉक्टरों को न्यू पीएचसी में ढकेल दिया गया है उन सभी को सीएचसी या जिला अस्पताल में लाकर इनकी स्थितियां सुदृढ़ की जातीं, लेकिन निजी क्षेत्र में खासतौर से जहां आयुर्वेद के प्रति आस्था बढ़ रही है वहीं सरकारी क्षेत्र में इनकी उपेक्षा का आलम है।

पिछले डेढ़ दशक में जालौन जिले में एक भी नया आयुर्वेदिक अस्पताल स्थापित नहीं किया गया है जबकि यही वह दौर है जिसमें लोगों ने बाबा रामदेव के चमत्कार को नमस्कार किया है। जो स्थापित अस्पताल में उनकी दशा भी बिगाड़ी जा रही है। जिले में ४१ आयुर्वेदिक अस्पताल हैं जिनमें से केवल १२ के अपने भवन हैं। १४ अस्पताल किराए के भवनों में चल रहे हैं। १४ ही अस्पताल ऐसे हैं जो निजी भवनों में हैं, लेकिन उनका किराया नहीं देना पड़ता। इस स्थिति के कारण आयुर्वेदिक अस्पताल अपने आपमें बीमार नजर आते हैं। इनकी भुतहा इमारतों में बैठने वाले डॉक्टर भी रुग्ण नजर आने लगे हैं। मनहूसियत का आलम रहने से जो मरीज वैद्य के यहां जाकर उसके द्वारा सुझाए गए महंगे नुस्खे खरीदने में परहेज नहीं करते वे भी सरकारी आयुर्वेदिक अस्पतालों की ओर रुख नहीं करना चाहते। फिर भी एक वर्ष में सरकारी आयुर्वेदिक अस्पतालों में अकेले जालौन जिले में ही १० प्रतिशत मरीज बढ़े हैं। अगर इन अस्पतालों का लुक ठीक हो जाए, डॉक्टर इनमें समय से आने और जाने लगें, जिन दवाओं की मांग है वे पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करा दी जाएं तो मौजूदा माहौल में कम से कम ५० फीसदी मरीजों की बढ़ोत्तरी इनमें हो सकती है, लेकिन शायद सरकार में बैठे लोगों की भी एलोपैथी के कमीशन से खूब जेब गरम होती हैजिसकी वजह से बढ़ती बीमारियों के बीच वे दूसरे किसी रास्ते के बारे में सोचना भी नहीं चाहते।

आज अगर सही शोध हो जाए तो यह निष्कर्ष निकलकर सामने आएगा कि जितनी मौतें बीमारों की इलाज न मिलने की वजह से हो रही हैं उससे बहुत ज्यादा मौतें एलोपैथी चिकित्सा में हो रहे फर्जीवाड़े की वजह से हो जाती हैं। सरकार न करे लेकिन दूसरे मनीषियों को तो इस तरह का कोई सर्वे सामने लाना ही चाहिए। चिकित्सा में धोखाधड़ी से ज्यादा बड़ा पाप कोई नहीं है और जो सरकार कारगर उपचार की व्यवस्था अपने नागरिकों के लिए न कर सके वह तो अक्षम्य हो ही नहीं सकती। इसका उदाहरण तो रामराज्य तक में मौजूद है, जब एक १२ वर्ष के ब्राह्मण बालक की मौत से इतना कोहराम मच गया कि भगवान श्रीराम को लोगों का कोप शांत करने के लिए शम्बूक की बलि चढ़ानी पड़ी। जनअसंतोष का कारण उस समय यह नहीं था कि किसी शूद्र ने वेदों का पाठ कैसे कर लिया। रामराज्य के खिलाफ विस्फोटक जनअसंतोष आश्वस्तकारी चिकित्सा व्यवस्था के अभाव की स्थिति के चलते भड़का था। रामायण का संदेश हमारी सरकारों को समझना पड़ेगा, वरना श्रीराम तो भगवान थे और उनके खाते में कई पुण्य थे जिससे उन्होंने जनअसंतोष की स्थितियों से पार पा लिया, लेकिन यह कलियुगी सरकारें अगर न सुधरीं तो शायद ही बच पाएं।

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