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बुंदेलखंड पैकेज के बहाने सामरा करा रहे लूट

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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केपी सिंह।
केपी सिंह।

बुंदेलखंड विकास पैकेज इस अंचल में समाहित मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के जिलों के लिये रेनफेड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने घोषित किया था ताकि मजबूत सूखा निरोधक व्यवस्थायें बन सकें। इस नजरिये से देखें तो इसका सबसे महत्वपूर्ण पार्ट आईडब्ल्यूएमपी यानी एकीकृत जल प्रबंधन के कार्य थे। जिस पर उत्तर प्रदेश में अभी तक रंच मात्र काम नहीं हुआ है मजे की बात यह है कि रेनफेड अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन डा.सामरा स्वयं पैकेज के काम का निरीक्षण करने के लिये जिलोंजिलों में भ्रमण कर चुके हैं। उम्मीद यह थी कि इसके बाद उप्र के भूमि सुधार एवं जल संसाधन विभाग को सबक मिलेगा लेकिन डा. सामरा ने उसे शह देने का काम किया जिससे विभाग की निरंकुशता और बढ़ गयी है।

भूमि सुधार एवं जल संसाधन विभाग में कई दशक पहले व्यवस्था बनायी गयी थी कि चूंकि किसान जागरूक नहीं है जिससे वे वर्षा जल संरक्षण के कामों में सहयोग नहीं करेंगे। विभाग उनका विश्वास जीतने के लिये पहले वहां की जरूरत के कुछ विकास कार्य करायेगा। इसे इंट्री प्वाइंट के कार्य नाम दिया गया है। यह तब की बात है जब ग्राम पंचायतों का स्वशासन के लिये वित्तीय पोषण नहीं होता था। पंचायतें संवैधानिक संस्था नहीं थीं। बुंदेलखंड पैकेज घोषित होने के समय तक यह स्थितियां बदल चुकी हैं। जिन इलाकों में जमीन ऊबड़–खाबड़ है वहां किसान भूमि सुधार एवं जल संसाधन विभाग को भूमि सुधार और मेड़ बंदी जैसे काम कराने के लिये सुविधा शुल्क तक देने को तैयार है तो अब इंट्री प्वाइंट के कामों पर जल प्रबंधन के बजट से पैसा खर्च करने की जरूरत क्या है। दूसरे पंचायतों के पास खडंज़ा, नाली निर्माण, स्कूल सहित तमाम परिसंपत्तियों के रखरखाव के लिये राज्य वित्त आयोग और तेरहवें निधि से पर्याप्त निधि आती है। ऐसे में अगर दूसरी संस्था को भी इसी काम में जुटा दिया जायेगा तो डुप्लीकेसी के आसार पैदा हो जायेंगे। तीसरे भूमि सुधार विभाग की समितियां स्वतंत्र रूप से गठित होती हैं जिनमें पंचायत का निकाय शामिल नहीं होता। नतीजतन अपने ही गांव में प्रधान व पंचायत सदस्यों को बाईपास करके उनसे काम कराया जायेगा तो यह पंचायत की संवैधानिक शक्तियों का अतिक्रमण होगा।

संयोग से मुझे डा. सामरा से इस मुद्दे पर बात करने का मौका मिल चुका है। पहले तो प्रधान की संवैधानिक हैसियत की परवाह न करते हुये डा. सामरा ने हठधर्मिता दिखाने की कोशिश की। बोले प्रधान पार्टीबंद होता है। वह निष्पक्ष तरीके से काम नहीं करता। जब मैंने उनसे कहा कि पार्टीबंद प्रधानमंत्री भी होता है तो क्या आप निष्पक्ष काम के नाम पर एक समानांतर सरकारी व्यवस्था कर देंगे। मैंने उनसे यह भी सवाल पूछा कि 73 वें, 74 वें संविधान संशोधन के बाद ग्राम और नगर निकायों में होने वाले कार्य तय करने का सारा अधिकार उनके चुने हुये प्रतिनिधियों को दे दिया गया है। आप इस सिस्टम को परे करके क्या यह साबित नहीं कर रहे कि आप संविधान से ऊपर हैं। इसके बाद डा. सामरा अचकचा गये। उन्होंने कहा कि नहीं, यह विभाग भी पंचायत की जल समिति को ही काम का माध्यम बनायेगी। डा. सामरा की नीयत ठीक होती तो होना तो यह चाहिये था कि जहां भूमि सुधार एवं जल प्रबंधन विभाग ने ग्राम पंचायत की परिसंपत्ति पर प्रधान से बिना पूछे काम कराया है और प्रधान ने इसकी शिकायत की है उससे संबंधित विभाग के अधिकारियों से खर्च धन की रिकवरी कराते पर सामरा ने बात आयी गयी कर दी। यह पैकेज 2008-09 से 2011-12 तक खर्च हो जाना चाहिये था। 2012-13 शुरू हो गया फिर भी इसके मूल काम आईडब्ल्यूएमपी का अभी तक श्रीगणेश नहीं हो पाया है।

उधर हर जिले के डीएम भूमि सुधार के अधिकारियों से कार्यस्थलों की सूची देने और उसे ऑनलाइन को कह रहे हैं। अधिकारी बैठक में आश्वासन दे जाते हैं लेकिन कोई ऐसा करने को तैयार नहीं है। साथ ही इस विभाग के निरीक्षकों में वाटर शेड बनाने आदि संरचनाओं के लिये तकनीकी दक्षता का भी पूर्णत: अभाव है। एक प्रशासनिक अधिकारी ने कहा कि अगर इंट्री प्वाइंट के काम कराना लाजिमी ही था तो भूमि सुधार विभाग के अधिकारी गांव जाकर लोगों से बात करते और उनकी संस्तुति पर बजट उस विभाग या पंचायत को भेजा जाता है जो मूल रूप से यह काम कराते हैं जैसे आरईएस, ब्लाक आदि। जल संरक्षण की संरचनाओं के लिये भूमि सुधार एवं संसाधन विभाग को अरबों का बजट दिया गया है। अगर इसका 50 प्रतिशत सही काम में लग जाये तो अल्प वर्षण से पीडि़त बुंदेलखंड को दीर्घकालिक वरदान मिल सकता है पर सामरा साहब तो फर्जीवाड़ा के उस्ताद विभागों से मिलकर खुली लूट करने पर उतारू हैं।

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