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जालौन जिले में रियासतों की कमी नहीं है जबकि अकेले कदौरा के नवाब को छोड़कर कोई यहां वास्तविक राजा नहीं हुआ। इसी कारण किसी राजा को यहां आजादी के बाद सरदार पटेल द्वारा किए गए देशी रियासतों के अधिग्रहण के एवज में दिया गया प्रीविपर्स नहीं मिला। फिर भी कुछ स्वयंभू राजा यहां के विशिष्ट हैं। सेंगर राजवंश की एकमात्र रियासत जालौन जिले के जगम्मनपुर में है। हालांकि, क्षत्रिय जाति को तारांकित करते हुए अंग्रेजों के पूर्व जो व्यवस्था बनी थी उसमें सेंगर मान्य नहीं थे क्योंकि न वे सूर्यवंश में आते हैं न चंद्रवंश में और न ही अग्निवंश में। अंग्रेज लेखक विलियम टॉड ने छत्तीस राजवंश अपनी किताब में स्थापित कर दिए जिनमें से कई राजवंशों को उन्होंने ब्रिटिश शासन के प्रति स्वामीभक्ति के लिए पुरस्कृत करने के बतौर ऐसा किया। हालांकि, यह बताने के पीछे मेरा तात्पर्य यह कतई नहीं है कि राजपूत राजवंश बहुत महान थे और जो इस राजवंश से बाहर रहे वे किसी भी मामले में उनसे कमतर थे।
विषयांतर न हो इसलिए इस बहस को लम्बा खींचने के बजाय असली मुद्दे पर आता हूं। जालौन जिले के अंग्रेजों की चाकरी करने वाले लेकिन वैसे अत्यंत गर्वीले राजवंश १९८९ के पहले लोकदल, मुलायम सिंह जिसकी देन हैंउस पार्टी को बड़े हेय दृष्टि देखते थे। किसी अहीर के नेतृत्व में काम करना अपनी शान के खिलाफ समझते थेलेकिन जैसा कि इनका चरित्र रहा हैताकतवर फिर चाहे मुगल रहे हों या अंग्रेज या अब मुलायम सिंह और मायावतीउनके आगे नतमस्तक हो जाना इनके स्वाभिमान और आनबानशान का विलक्षण नमूना है और खुशी की बात यह है कि आज भी यह इस परम्परा को बरकरार रखे हुए हैं। पर मुलायम सिंह को क्या हो गया हैमायावती सच कहती हैं अगर इन राजवंशों की कृपा का मोहताज जमाना बना रहता तो मुलायम सिंह को शायद गांव की प्रधानी भी यह लोग नसीब न होने देते। मुलायम सिंह आज देश के शिखर नेताओं में हैं तो उसके पीछे उनकी अपनी संघर्ष और नेतृत्व क्षमता का तो प्रताप है ही हाशिए पर पड़े उस समाज की जिजीविषा को भी पूरा श्रेय है जो इन राजवंशों के जलजले के समय इनके दरबार में प्रवेश का अधिकार भी नहीं रखते थे। राजवंश तो अंग्रेज प्रभुओं की कृपा से इतराते थे, लेकिन जिस समाज ने मुलायम सिंह को नेता बनाया उसका पूरा खेल उसके अपने पुरुषार्थ का है। आज जालौन जिले के हर राजवंश के नव उत्तराधिकारी की गाड़ी पर समाजवादी पार्टी का झंडा गौरव चिह्न के रूप में लहराता नजर आता है। यह विडम्बना ही है कि दलित और पिछडे़ समाज के लोग अपनी दम पर अधिकार और सम्मान हासिल करते हैंलेकिन इसके बाद भी उन्हें लगता है कि जब तक समाज के परम्परागत प्रभु वर्ग से मान्यता न मिल जाए तब तक उनकी शान अधूरी है। पता नहीं यह लोग इस हीन भाव से कब उबरेंगे। दीवान जर्मनीदास की किताब महाराजा और महारानी जिन्होंने पढ़ी है वे इन राजवंशों के प्रति जुगुप्सा से भर जाते हैं, लेकिन आज मुलायम सिंह का समाजवाद बरास्ता इन राजवंशों के आगे कदम बढ़ाने में सक्षम हो पा रहा है। यह इस देश की फितरत है कि यहां केवल नाम आधार हैयथा कलियुग केवल नाम अधारा।
मुलायम सिंह ने भी समाजवाद के नाम का पेटेंट अपना लिया। अब वे जो करें वही समाजवाद है भाड़ में जाएं लोहिया और भाड़ में जाएं आचार्य नरेंद्रदेव। एक समाजवादी चंद्रशेखर थे जो स्वर्ग सिधार गएजिनका समाजवाद अपनी जाति के अहंकार के उत्थान और बिहार के तत्कालीन माफिया सूरजदेव सिंह से सुर्खरू हुआ, अब मुलायम सिंह हैं, जिनका समाजवाद पहले महामहिम अमर सिंह द्वारा इंद्रसभा यानी फिल्मी दुनिया की अल्प वस्त्रधारिणी नायिकाओं और नायकों के सुशोभित होने से धन्य होता था। आज भी अमिताभ बच्चन उनके समाजवाद के एक नगीने बने हुए हैं। वे उनके पिता डॉहरवंश राय बच्चन के भी बहुत मुरीद हैं। हालांकिमैंने कभी यह नहीं सुना कि हरवंश राय बच्चन की इमेज समाजवादी कवि या जनकवि के रूप में रही हो, लेकिन बकौल मुलायम सिंह बाबा नागार्जुन को याद करना जरूरी नहीं है। अगर समाजवाद के सिद्धांतों पर खरा उतरना है तो हरवंश राय बच्चन की मधुशाला पढ़ो और उसी पर अमल करो।
मुलायम सिंह के खानदान की तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में पदार्पण करने के लिए तैयार हैलेकिन यह वंशवाद नहीं है। डॉलोहिया ने नेहरू परिवार के वंशवाद के विरोध को समाजवादी आंदोलन के सबसे प्रमुख बिंदु के रूप में चिह्नित किया थालेकिन मुलायम सिंह का स्वदेशी परिवार जितना आगे बढ़ेगा उतना ही समाजवाद निखरेगा, ऐसा आज हम सभी का विश्वास है। अब मुलायम सिंह के समाजवाद का एक नया चेहरा राजवंशों के पिटे मोहरों को अपनी पार्टी का आभूषण बनाने के रूप में सामने आ रहा है। ऐसा भी नहीं है कि यह राजवंश कोई वीपी सिंह की तरह हों, जिन्होंने अपने आपको डीक्लॉस कर लिया था। यह तो आज भी विदेशी साम्राज्य के प्रति नतमस्तक रहने के अपने पूर्वजों के शौर्य के कायल हैं और इनके मुंह से उनके पराक्रम का जो बखान आज भी होता है उससे लगता है कि अगर इस देश में महानता का यह क्रम आगे भी जारी रहा तो दस हजार साल तक आने वाले समय में हमारी तकदीर में सेविकायी की नियति और लिख जाएगी। वैसे भी सेवा से अधिक बड़ा जीवन मूल्य कोई नहीं है।
एक अच्छे समाज बनाने के कई विकल्प और विचार हो सकते हैं। मुझे इस पर कोई एतराज नहीं है। अगर एक लायक खानदान के हाथ में वंशानुगत आधार पर सत्ता की बागडोर सुनिश्चित करने में किसी को देश और समाज का भविष्य सुरक्षित नजर आता है तो यह भी एक विकल्प है क्योंकि अतीत में ऐसा होता रहा है। स्वयं रामचंद्र जी का इक्ष्वाकु वंश इसका उदाहरण है। इस वंश के नेताओं ने प्रजा की उन्नति और कल्याण का बहुत ख्याल रखा, लेकिन इसे खुलकर कहा जाना चाहिए। समाजवाद का नाम लेकर वंशवाद चलाना तो पाप है। इससे तो बेहतर हो कि घोषित कर दिया जाए कि समाजवाद एक पुराना विचार था। जब हमें उससे आगे का विचारसूत्र मिल गया है तो हम उस पर आगे बढ़ेंगे। इसमें कोई बुराई नहीं है। अगर पुराने राजवंशों का रियासत चलाने का हुनर आज की व्यवस्था चलाने में नौसिखिए राजनीतिज्ञों से बेहतर हो सकता है तो उसे अपनाने में क्या हर्ज है, लेकिन इसे खुलकर कहा जाना चाहिए। न पूंजीवाद पूर्ण है न समाजवाद और साम्यवाद पूर्ण और अंतिम है। इसके बाद भी कई वाद आएंगे मुलायम सिंह और उनके अनुयायियों को साहस करना चाहिए कि वे जो कर रहे हैं उसका वैचारिक आधार पर सूत्रीकरण कर इस नये वाद का नामकरण करें ताकि इतिहास में वे भी मार्क्स व अन्य क्रांतिकारी विचारकों की तरह कालजयी स्थान बना सकें।
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