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अखिलेश को भस्मासुर पालने का शौक क्यों

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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विद्युत आपूर्ति की गड़बड़ व्यवस्था उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार के लिये सबसे बड़ा सिरदर्द है। इस मामले में कोई भी सरकार हो वह पिछले दो दशक से मजबूर ही रही है। उत्पादन बढ़ाया नहीं गया जबकि खपत बढ़ती गयी। पहले हर जिले में कुछ ही गांवों में विद्युतीकरण था अब लगभग सभी जिलों में केवल चंद मजरे विद्युतीकृत होने से रह गये हैं। सिंचाई नलकूपों की संख्या भी इस दौर में कई गुना बढ़ी है। एसी से लेकर विद्युत उपभोग से संचालित होने वाले उपकरणों की भरमार हो गयी है। ऐसी हालत में सुचारु आपूर्ति का प्रबंधन बड़ा कठिन काम है।

उस पर तुर्रा यह है कि अखिलेश सरकार ने कुछ जिलों में 24 घंटे विद्युत आपूर्ति की घोषणा कर रखी है। लोग इसके खिलाफ अदालत तक में चले गये। इस फैसले की वजह से यह संदेश स्थापित हो गया कि मुख्यमंत्री व उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को भरपूर सुख देने के लिये बाकी जिलों का उत्पीडऩ किया जा रहा है। निश्चित रूप से इसमें अतिश्योक्ति है। चीजों को समझने वाले लोगों को आपत्ति इस बात पर नहीं है लेकिन विद्युत बोर्ड और वितरण निगमों में जिस तरह की निरंकुश कार्यप्रणाली का बोलबाला है वे उसमें अखिलेश से हस्तक्षेप की उम्मीद पाले हैं जिसमें अखिलेश फेल हो रहे हैं।

निजीकरण को जब हर मर्ज की रामबाण दवा के रूप में प्रचारित किया जा रहा था तब विद्युत व्यवस्था का निजीकरण हो जाने पर कितनी शानदार सेवा मिलेगी इसके भी सब्जबाग दिखाये गये थे। विद्युत क्षेत्र में जिन व्यवस्थाओं का निजीकरण किया गया उनका हाल देखें तो बहुत ही खराब तस्वीर उभरती है। निजीकरण के ठेके तो अफसरों को ही मंजूर करने हैं। अफसरों ने बिल बांटने के ठेके उन कंपनियों को मंजूर कर दिये हैं जो उनके रिश्तेदारों की हैं और उन्हें मनमाना कमीशन देती हैं। इन कंपनियों के कर्मचारियों को कोई मेहनताना नहीं दिया जाता। इनके बेगार करने वाले एजेंट दिन भर हेड मशीन से बहुत बड़े एमाउंट का फर्जी बिल निकालकर घरों और प्रतिष्ठानों में बांटते हैं। इसके बाद उसके मालिक के होश उड़ जाते हैं। फिर सौदेबाजी की जाती है और अच्छी खासी मुद्रा लेकर बिल संशोधित कर दिया जाता है। यह कंपनियां हर महीने बिल न बांट कर साल दो साल बाद बिल बनाकर पहुंचाती हैं। गरीब ग्रामीण हजारों रुपये के बिल का एकमुश्त भुगतान कैसे कर सकते हैं। उनकी फिर भी बड़ी फजीहत की जाती है। अखिलेश को मुख्यमंत्री के पद पर बैठे इतने दिन हो जाने के बाद यह कारगुजारियां पता नहीं चलीं तो अचंभा है।

इसी तरह लाइन व फाल्ट रिपेयरिंग का ठेका निजी व्यक्तियों के हाथ में है। यह लोग भी अपने लाइनमैन व मिस्त्रियों को भुगतान नहीं करते। इस कारण लाइनमैन जानबूझकर फाल्ट करके बिजली गुल कर देते हैं ताकि लोग उन्हें पैसे दें और तब वे रात में ही उसे सुचारु कर दें। यह लाइनमैन अपना खर्चा निकालने के लिये ग्रामीण क्षेत्र में घरेलू लाइट जलवाने से लेकर चक्की चलवाने तक का काम कर रहे हैं। अखिलेश यादव ने इसमें कोई सुधार क्यों नहीं किया। शहरों में कौन बेवकूफ है जो अपने घर का एसी विधिवत कनेक्शन से चलवाता है। प्राइवेट लाइनमैन यह करिश्मा करते हैं कि लोगों के एसी भी बदस्तूर चलें और बिल भी चुकता न करना पड़े। इस पर भी रोक नहीं हो पा रही है।

बिजनेस प्लान के नाम पर जर्जर लाइन, खंभे बदलवाने का हर जिले को प्रति वर्ष बजट मिलता है लेकिन एक पैसा खर्च नहीं होता। बहुत से निगम केंद्रीयकृत खरीद कर रहे हैं जहां बिना सप्लाई लिये ही तार खंभों की खरीद का पेमेंट हो जाता है और कागजों में जिलों के अधिशाषी अभियंताओं को मजबूर कर वे यथास्थान लग भी जाते हैं। इसी कारण ग्रामीण क्षेत्रों में बाबा आदम के जमाने की लाइनें नहीं बदल पा रहीं। इतने फाल्ट होते हैं कि दिन भर में दो घंटे भी सही आपूर्ति हो जाये तो गनीमत है। इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्र का कोई जेई अपने मुख्यावास में नहीं रहता। जेई अपने क्षेत्र में आवास बनाने के लिये मजबूर हो शायद ऐसी प्रशासनिक क्षमता अखिलेश में नहीं है।

आजकल ट्रांसफार्मर फुंकने का सिलसिला बहुत जारी है। ग्रामीण क्षेत्रों में से हजार रुपये की अवैध वसूली किये बिना जेई ट्रांसफार्मर नहीं बदलवाते। इसी कारण ट्रांसफार्मर उनका तेल निकालकर फुंकवाये जाते हैं। बाद में जो नया ट्रांसफार्मर रखा जाता है वह भी दिन में ही धड़ाम हो जाता है। भले ही गारंटी हो लेकिन फुंका ट्रांसफार्मर बदलने में महीनों का समय लिया जाता है जिससे गारंटी बेमतलब हो जाती है। क्या अखिलेश को इस भ्रष्टïाचार की भनक नहीं है या जनता से सीधे जुड़ी इस समस्या में भी वे चुनावी फंड का रास्ता खोजे हुये हैं। महीने में दिन ही बिजली मिलेगी और वह भी कुछ घंटों के लिये तो भी न्यूनतम बिल तो वसूल हो ही जायेगा। क्या गरीब कनेक्शन धारकों से मुफ्त की वसूली करके अखिलेश बिजली विभाग के नकारा अभियंताओं को तनख्वाह बांटना चाहते हैं। उस पर भी बदतमीजी का आलम। बिजली की समस्या की वजह से कानून व्यवस्था के लिये संकट पैदा हो जाता है।

कायदे से बिजली वितरण की हर स्तर की यूनिट में एक पीआरओ हो जो अखबारों के माध्यम से लोगों को कहां आपूर्ति में व्यवधान होना है इसकी समय से जानकारी और उसके औचित्य के बारे में लोगों को अवगत कराकर सरकार के प्रति जनभावनायें न भड़कने देने का काम करे। इंजीनियर उपभोक्ताओं की कॉल काटने की बजाय रिसीव करके परेशानी की शिकायत पर उन्हें संतुष्ट करें पर बिजली विभाग के लोग बदतमीजी करते हैं क्योंकि उनका तो कुछ बिगड़ता नहीं है। नुकसान होगा सत्तारूढ़ नेताओं का जिन्हें वोट मांगने लोगों के बीच जाना है। इसके बावजूद अखिलेश कुछ नहीं कर पा रहे। क्या उन्हें भी शिवजी की तरह भस्मासुर को वरदान देने का रोग लग गया है।

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