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नई नहीं रिलायंस की लीला

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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अरविंद केजरीवाल ने रिलायंस इंडस्ट्रीज पर हमला बोलकर तमाम पुराने जख्म कुरेद दिए हैं। भारतीय लोकतंत्र का सबसे अभिशप्त दिन था जब रिलायंस इंडस्ट्रीज का प्रभुत्व राजनीतिक सत्ता पर स्थापित होने की शुरुआत हुई। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनते ही महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मुरली देवड़ा ने मुम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासम्मेलन बुलाया, जिसकी मेजबानी का पूरा खर्चा रिलायंस ने उठाया था। यहीं से सत्ता में उसकी घुसपैठ शुरू हुई। इसके बाद रेयॉन में मिलाए जाने वाले दुर्लभ केमिकल के आयात की मंजूरी नुस्लीवाडिया से छीनने के लिए उसने राजीव गांधी पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और इसी बीच आर्थिक अभिसूचना के मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली फेयरफैक्स नाम की कम्पनी की सेवाएं तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह ने काले धन का स्रोत पता लगाने के लिए लीं, जिसमें कहा जाता है कि बहुत प्रमुखता से रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिकान का नाम आया।

रिलायंस ने इसके बाद वीपी सिंह का फन कुचलने के लिए राजीव गांधी पर अपने सम्मोहन का इस्तेमाल किया और बात यहां तक पहुंची कि तत्कालीन प्रधानमंत्री और उनके वित्त मंत्री के बीच ठनी फिर जो हुआ वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। किस तरह वीपी सिंह ने कांग्रेस के खिलाफ परचम लहराया और सत्ता में जा पहुंचेजिसके बाद सबसे ज्यादा कोई परेशान था तो रिलायंस इंडस्ट्रीज। अयोध्या मुद्दे पर भाजपा के समर्थन वापस लेने के बाद भी लोकसभा में वीपी सिंह द्वारा विश्वास मत पेश कर कराए गए शक्ति परीक्षण में उनकी सरकार मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने के फैसले के कारण हुए कितने भी बवंडर के बावजूद पतित न होती अगर रिलायंस ने अपनी थैली का मुंह न खोला होता। चंद्रशेखर को कैसे जनता दल से टूटे सांसदों के एक मुट्ठी भर वर्ग का समर्थन मिला, यह सब जानते हैं। भले ही उन्हें सार्वजनिक तौर पर तमाम सच को मानना गवारा न हो।

पहली बार यह हुआ कि किसी संदिग्ध गतिविधियों वाले औद्योगिक घराने ने यह साबित किया कि भारत की सत्ता में अदलबदल का खेल उसकी मुट्ठी में है। यह एक बहुत गलत परम्परा की शुरुआत थीलेकिन इसे मुद्दा न बनाकर देश को गड्ढे में ले जाने वाली इस हरकत को लोगों ने सिर्फ इसलिए मजबूती प्रदान की कि वे सामाजिक अधिनायकवाद की अपनी गिरफ्त सुदृढ़ रखने के लिए हर तरह की नैतिकता और देश व समाज हित को गौण बनाए रखने का माइंडसेट सदियों से तैयार किए हुए थे। राजनीतिक अधिष्ठान को अपने अधीन करके रिलायंस ने कैसेकैसे गुल खिलाए यह भी सबके सामने बहुत उजागर है। रिलायंस इंडस्ट्रीज दूरसंचार के क्षेत्र में आई तो स्पेक्ट्रम घोटाले का आगाज उसी ने किया। सरकार को लोकल कॉल का खर्चा भरा और उस पर ग्राहकों से एसटीडी की दर से वसूली की। पकड़े गए तो दूरसंचार नियामक प्राधिकरण में साठगांठ के चलते मामूली हर्जाना भरकर मुक्ति पा ली। राजनीतिक तंत्र के मातहत हो जाने का ही नतीजा था कि सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों ने रिलायंस के शेयर का भाव बाजार में बढ़वाने के लिए हर बार अपने निवेशकों की पूंजी झोंकी। रिलायंस ने पेट्रोल पम्प स्थापित कराने का ड्रामा किया और उसका क्या हश्र हुआ, यह बताने की जरूरत नहीं है। मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी अपने ग्रुप की नीति के तहत उत्तर प्रदेश की पिछली सपा सरकार के खास हो गए और उन्होंने गैस पर आधारित विद्युत परियोजना के नाम पर बुलंदशहर और नोएडा में तमाम कीमती जमीन हथिया ली। उनके लिए जमीन के सर्किल रेट में बेतुका परिवर्तन किया गया। यह परियोजना आज तक मूर्त रूप नहीं ले सकी है। शुरुआत में रिलायंस ने गुजरात में दूरसंचार सेवाओं को प्रदान करने का ठेका लिया था और सरकारी शर्तों की खुलेआम अवहेलना करते हुए बाद में ग्रामीण दूरसंचार सेवा के संचालन में कोई योगदान करने से इंकार कर दिया था। इसके बदले उसे मामूली जुर्माने के अलावा कोई सजा नहीं मिली।

अरविंद केजरीवाल ने राजग सरकार के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के दत्तक दामाद रंजन भट्टाचार्य पर उनकी पकड़ से रिलायंस को मिले अनुचित लाभ के जो आरोप लगाए हैं वे कोई नए नहीं हैं। अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्रित्वकाल में ही मीडिया के साहसी प्रतिष्ठानों में यह खबरें छपती रहती थीं कि धीरू भाई अंबानी इस सरकार में कितने ताकतवर हो गए हैं। वे जब दिल्ली आते हैं तो उनकी अगवानी के लिए पीएमओ के सीनियर अफसर हवाई अड्डे पर मौजूद होते हैं। उनके एक इशारे पर पीएमओ में बड़े से बड़े पद पर बैठे अफसर बदल दिए जाते हैं। एक औद्योगिक घराना जनादेश को अपने जूते की नोंक पर रखने की हद तक ताकतवर बन जाए और जनता के स्वाभिमान पर कोई फर्क न पड़े यह केवल भारत में ही हो सकता है। वैसे तो बिड़ला घराना भी आजादी के पहले से कांग्रेस के काफी नजदीक रहा और उसने कांग्रेस के शासनकाल में इस नजदीकी को अपने व्यापारिक लाभ के रूप में भुनाया भीलेकिन बिड़ला घराना कभी इतना ताकतवर नहीं हुआ कि राजनीतिक अधिष्ठान को नियंत्रित कर सके। दूसरे टाटा और बिड़ला के उत्पाद उपयोगिता और गुणवत्ता में भी एक साख रखते थेलेकिन रिलायंस ने जिस क्षेत्र में भी काम किया उसमें अपनी पहचान ग्राहकों के बीच केवल एक फ्रॉड कम्पनी के रूप में बनाई। कोई यह नहीं कह सकता कि रिलायंस का अमुक उत्पाद या अमुक सेवा बहुत बेहतर है अथवा विश्वसनीय है। फिर भी रिलायंस कम्पनी शेयर बाजार की बादशाह रही, किसकी बदौलतअनुचित राजनीतिक साठगांठ की बदौलत।

कावेरी गोदावरी बेसिन में कच्चा तेल और गैस निकालने के लाइसेंस में निर्धारित शर्तों को ताक पर रखकर कम उत्पादन करने और इसके लिए उसे प्रताड़ित करने की कोशिश करने पर जयपाल रेड्डी जैसे ईमानदार पेट्रोलियम मंत्री को हटवा देने की उसकी हनक देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके पहले रिलायंस ने नहीं चाहा तो मणिशंकर अय्यर को भी पेट्रोलियम मंत्रालय से हाथ धोना पड़ा था। अरविंद केजरीवाल का उन पर हमला एकदम उचित है। औद्योगिक घराने भी किसी देश के एक स्तम्भ होते हैं बशर्ते वे ईमानदारी से अपना काम करेंजैसा कि टाटाबिड़ला का उदाहरण हैलेकिन मुनाफाखोरी के लिए सत्ता पर हावी होकर उसे गलत काम करने के लिए मजबूर करने की ताकत किसी औद्योगिक घराने द्वारा बनाना राष्ट्रीय संप्रभुता के साथ खिलवाड़ जैसा अपराध है। केजरीवाल ने निशाना सही जगह लगाया है और इस समय सफेदपोश बुद्धिजीवी वर्ग उनके साथ भी हैलेकिन फिर भी रिलायंस इंडस्ट्रीज का बाल बांका हो पाएगाइसमें संदेह है। वजह यह है कि इस देश की जनचेतना न्याय और ईमानदारी के पक्ष में नहीं है। हर निर्णायक मौके पर यह बात साबित होती रही है। यहां के अगुआकार वर्ग की निगाह में सही का प्रतिमान क्या है और गलत का क्या, इसका निष्कर्ष निकालना बड़ा मुश्किल काम है। इस कारण आने वाले मोड़ पर उसे कैसा फैसला लेना पड़ जाए, कोई नहीं कह सकता। आज केजरीवाल के कहने से जिस रिलायंस इंडस्ट्रीज को वह शैतान का दूसरा अवतार बता रहे हों कल उनको वही रिलायंस इंडस्ट्रीज देवदूत नजर आने लगे जो सामाजिक न्याय के दैत्य को पराजित करने के लिए दैवीय अवतार बनकर प्रकट हुआ है। अगर ऐसी उलटवासी होती है तो इसमें कोई आश्चर्य न होगा।

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