Menu
blogid : 11678 postid : 198

पचनद की धरा पर पल्लवित हुआ आयुर्वेद

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
  • 100 Posts
  • 458 Comments

कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष

पचनद का नयनाभिराम दृश्य।
पचनद का नयनाभिराम दृश्य।

जालौन जनपद में पांच नदियों सिंधक्वांरीयमुनापहुज और सिंधका संगम स्थल पचनद विशिष्ट स्थान रखता है। इसके साथ ही कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला मेला भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस मेले को लेकर वैसे कई धार्मिक मान्यताएं लम्बे समय से प्रचलित हैं परंतु प्रसिद्ध इतिहासकार डॉदेवेंद्र कुमार सिंह ने इस मेले का सम्बंध आयुर्वेद से जोड़ा है। जब उन्होंने अन्वेषण शुरू किया तो पता चला कि पचनद मेले का इतिहास संत तुलसीदास के समय से ही नहीं है। डॉदेवेंद्र के अनुसार आज से हजारों वर्ष पूर्व यह स्थान आयुर्वेद के शोध के लिए विख्यात रहा है। मानव शरीरजिसके बिना कोई भी धर्मनियम निभने असम्भव हैंकी रक्षा का एकमात्र साधन आयुर्वेद है। जिस पर वेदों के संहिता काल से ही गम्भीर विचार होते रहे हैं। कहा जाता है कि आयुर्वेदिक सिद्धांतों का उपदेश ब्रह्मा ने प्रजापति कोप्रजापति ने अश्विनी कुमारों कोअश्विनी कुमारों ने इंद्र को और इंद्र ने भरद्वाज को दिया। कश्यप संहिता के अनुसार अत्रि ने इंद्र से ज्ञान प्राप्त करके उसे अपने पुत्रों और शिष्यों को दियाजिससे आयुर्वेद की यह परम्परा आत्रेय पर्यंत आ सकी।

अत्रि अपने आश्रम चित्रकूट में आयुर्वेद की शिक्षा देते थे मगर उन्होंने अपने पुत्र आत्रेयपुनर्वस को अपने मित्र वामदेव के आश्रम (आधुनिक बांदा) में शिक्षा के लिए भेजा, जहां उन्होंने आयुर्वेद की शिक्षा प्राप्त की। फिर आचार्य आत्रेय पुनर्वस काम्पिल्य (पांचाल राज्य आधुनिक फर्रुखाबाद, इटावा, मैनपुरी) चिकित्सा विद्यालय में आयुर्वेद के आचार्य बने। आत्रेयपुनर्वसु के बारे में कहा जाता है कि वे अपने साथ आयुर्वेदनिष्णात मुनियों को लेकर जंगलों में औषधियों एवं वनस्पतियों के शोध के लिए परिभ्रमण करते रहते थे। उनके छह शिष्य थेअग्निवेश, छारपाणि, हरीत, पराशर, भेड़ और जतूकर्ण।

आत्रेय ने अपने तीन शिष्यों पाराशरभेड़ और जतूकर्ण को इस क्षेत्र आधुनिक जालौन जिलामें आयुर्वेद के शोध के लिए भेजाक्योंकि यहां के जंगलों में वनस्पतियों की भरमार थी। पराशर ने बेतवा नदी के किनारे आधुनिक परासन गांवअपना आश्रम स्थापित किया और शोध के बाद पाराशर संहिताकी रचना की। उनके योग्य पुत्र व्यास ने इस पर और शोध करके यजुर्वेदकी रचना करके संसार की बड़ी सेवा की। आचार्य भेड़ ने जालौन के पास अपना आश्रम स्थापित किया और शोध में लग गए। उनकी रचित भेंड़ संहिताआयुर्वेद का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। जहां पर उनका आश्रम था वह स्थान अब भेंड़ गांव के नाम से पहचाना जाता हैलेकिन वहां के निवासी है अब नहीं जानते हैं कि गांव का नाम भेंड़ क्यों है।

मेले के दौरान पचनद किनारे बैठे श्रद्धालु।
मेले के दौरान पचनद किनारे बैठे श्रद्धालु।

जतूकर्ण ने पचनदा के पास वर्तमान में जगम्मनपुरअपना शोध केंद्र स्थापित किया। जहां पर उनका शोध केंद्र था। वह स्थान उनके नाम जतूकर्ण के कारण कर्णखेड़ा के नाम से जाना जाता था। फिर बिगड़ कर कनार खेड़ा कहा जाने लगा। कहा गया है कि किसी राजा कर्ण ने बसाया था मगर वास्तविकता यही है कि आयुर्वेदाचार्य जतूकर्ण के कारण ही इस स्थल का नाम कर्णखेड़ा पड़ा था। उनकी शोध रचना जतूकर्णकायचिकित्साहै। उनका कोई योग्य शिष्य नहीं था अतअन्वेषक अन्य स्थानों को प्रयाण कर गये। प्रारम्भिक आयुर्वेद मुख्यतकाष्ठौषधियों पर निर्भर थाजो यहां प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थीपरंतु पतंजलिनागार्जुन के काल में इसमें धातुओंरसायनों का उपयोग होने लगा। इस कारण यहां के संस्थान बंद हो गये।

इस समय तक आयुर्वेद का ज्ञान पूरे भारतवर्ष में फैल चुका था। फिर चरक का युग आया। इसको आयुर्वेदी का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। चरक ईसा से लगभग वर्ष पूर्व अवतरित हुए थे। चरक ने जतूकर्ण और भेड़ के सहपाठी अग्निवेश द्वारा लिखित अग्निवेश तंत्रके प्रतिसंस्कार पर कार्य शुरू किया जो चरक संहिताके नाम से प्रसिद्ध है। चरक अभी आधा ग्रंथ तेरह अध्यायही लिख पाए थे कि उनकी मृत्यु हो गई।

चरक के बाद लगभग दो सौ पचास वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद जनपद जालौन के पचनदा में दृढ़बलका जन्म होता है। जिन्होंने अग्निवेशभेड़जतूकर्ण के काम को आगे बढ़ाते हुए चरक संहिता के वे अध्याय जिनको चरक पूरा नहीं कर पाए थेमें अध्याय और जोड़कर पूरा किया।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से दृढ़बल के बारे में सूचना उनके लेखन से ही प्राप्त होती है। उनके पिता का नाम कपिलबल था और वे पचनदा के रहने वाले थे। चरक संहिता में मिलता है

विस्तारयति लेशोक्तं संक्षिपत्याति विस्तरम्।

संस्कत्र्ता कुहते तंत्र पुराणं च पुनर्नवम्॥

अतस्तंत्रोत्तम मिदं चरकेणाति बुद्धिना।

संस्कृतं तंतु संसुष्टं विभागे नोपालभ्यते॥

इदमन्यून शब्दार्थ तंत्र दो विवार्जितम्।

अखंडार्थ दृढ़बलो जात: पंजनदपुरे॥

सप्तदशौषधाध्याय सिद्धकल्पैरपूरयत. सिद्धि 12/76-79

हजारों वर्ष में जब शुद्ध वायु, जल, देश तथा काल विकृत हो जाते हैं, तब विभिन्न प्रकृति के मानवों का देह, आहार, बल, मन, अवस्था समान होने पर भी एक साथ एक ही समय एक ही रोग से नगरों और जनपदों का देखतेदेखते विनाश हो जाता है। औषधियां अपने स्वभावगत गुणों को छोड़कर विकृत हो जाती हैं। उनके स्पर्श तथा सेवन से नगर का विनाश हो जाता है। कुछ ऐसा ही जतूकर्ण के कर्णखेड़ा के साथ भी हुआ। पचनदा भी गर्त में चला गया। केवल पांच नदियां ही वहां पर रह गईं।

लेकिन समय फिर बदला। दसनामी संन्यासियों की दस शाखाएं होती हैं। जैसे गिरिपुरीसरस्वतीआरण्यतार्थ आदि। इसी संप्रदाय की एक शाखा वनभी हैजो लगभग एक हजार वर्ष पूर्व इस जनपद में आती है और उत्तर में यमुना नदी के किनारे अपनी पीठ स्थापित करती है। उसी पीठ के एक संत ने पचनदा को फिर उसका पुराना वैभव वापस दिलवाने के लिए पीठ को कंजौसा पचनदाले गए। किसी को सोचने और कहने से ही किसी जगह को आसानी से महत्व नहीं मिलता। एक कहावत है बनिया बांधे बाजार नहीं लगता।तुलसीदास और पीठ के महंत मंजूवनके मिलन की घटना को धर्म से जोडऩे पर कड़ी मिल जाती है। दोनों ही धार्मिक व्यक्ति थे।

इस विशाल देश में मेलों का अपना अलग महत्व है और ये मेले धर्म से जुड़े हैं। स्थान विशेष पर स्नान, ध्यान, देवपूजन और देवीदर्शन से जुड़े हैं। क्या आश्चर्य दोनों मुनियों की रायसलाह से यहां पर मेला लगना शुरू हुआ? क्या मेले का रोग, स्वास्थ्य रक्षा से कोई सम्बंध है? क्या जतूकर्ण के आयुर्वेद आश्रम का कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव किसी रूप में परिलक्षित है? डॉ. देवेंद्र कुमार सिंह इसको लेकर सकारात्मक सोच रखते हुए कहते हैं कि यह मेला कार्तिक माह में लगता है और स्कंदपुराण के वैष्णवखंड में कार्तिक के लिए कहा गया है

रोगापहं पातनाख कृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्।

मुक्तेनिदानं नहि कार्तिकव्रताद विष्णुप्रियादन्यादिहास्ति भूतले॥

इस मास को जहां रोगापह अर्थात् रोगविनाशक कहा गया है, वहीं सद्बुद्धि प्रदान करने वाला, लक्ष्मी का साधक तथा मुक्ति प्राप्त कराने में सहायक बताय गया है। यहां शनि से पीडि़त, सूर्य से पीडि़त, प्रेतबाधा से पीड़ित व्यक्ति आकर व्याधि से मुक्ति पाने की प्रार्थना कर जानेअनजाने में जतूकर्ण के आयुर्वेद आश्रम की याद दिलाता है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply