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संघर्ष की जिंदा मिसाल शरद यादव

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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sharadरविवार को जनसत्ता में प्रथम पृष्ठ पर संघर्ष की जिंदा मिसाल हैं शरद यादव शीर्षक से शरद जी को सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिलने के उपलक्ष्य में एक लंबी चौड़ी खबर प्रकाशित की गयी है जिसमें उनकी शान में जो कसीदे काढ़े गये हैं उससे शायद शरद जी भी अकेले में अपने ऊपर शर्मिंदा हो रहे होंगे। शरद जी के बारे में याद करना होगा एचडी देवगौड़ा के विश्वास मत पर लोक सभा में चल रही बहस के दौर का इसका प्रसारण टीवी पर लाइव हो रहा था और पूरा देश एक टक होकर नेताओं के भाषण सुन रहा था। शरद यादव ने देवगौड़ा के पक्ष में बोलते हुये सामाजिक न्याय से राष्ट्रीय मोर्चा, वाम मोर्चा को जोड़ते हुये जब यह कहा कि इस देश में पांच हजार वर्ष से गौतम बुद्ध के जमाने से जाति के आधार पर बड़े समूह के साथ अन्याय हो रहा है तो भाजपा के सांसद ने खड़े होकर टोका कि गौतम बुद्ध तो केवल ढाई हजार वर्ष पहले हुये थे। शरद जी ने पांच हजार वर्ष पहले उनके होने का हवाला कैसे दे दिया। शरद यादव ने पहले अपनी बात पर अड़े रहने की कोशिश की लेकिन जब जयपाल रेड्डी और जनता दल के अन्य वरिष्ठ सदस्यों ने भी शरद यादव को एहसास कराया कि वे गलती पर हैं तो शरद यादव को कहना पड़ा कि वे हिस्ट्री के नहीं इंजीनियरिंग के छात्र रहे हैं इस कारण उनसे हिस्ट्री के मामलों में गफलत हो सकती है।बहरहाल शरद यादव की इस किरकिरी को अभी बहुत अरसा नहीं हुआ है।

पहली बार वे में जबलपुर में सेठ गोविंद दास जैसी हस्ती को लोक सभा में हराकर सबसे कम उम्र के सांसद बने थे तो सारे देश के हीरो हो गये थे। धर्मयुग में भी उन पर कवर स्टोरी छपी थी जो उस जमाने में बहुत बड़ी बात थी। जनता पार्टी के समय युवा जनता के राष्टï्रीय अध्यक्ष के रूप में उन्होंने काम के अधिकार के सवाल पर अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में जनसंघ घटक की वीरेंद्र सखलेचा सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया था जिसमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल हुआ था। मुझे याद है कि मध्य प्रदेश के पंचायतीराज मंत्री हरिभाऊ जोशी को वीरेंद्र सखलेचा ने प्रदर्शन में ज्ञापन लेने के लिये भेज दिया था और युवा जनता के कार्यकर्ताओं ने उनकी जमकर छीछालेदार कर दी थी। निश्चित रूप से युवा जनता के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में शरद यादव का कार्यकाल बेहद जुझारू रहा और उन्होंने संघ के समूची जनता पार्टी पर कब्जा करने के षड्यंत्र को नेस्तनाबूद करने के लिये बहुत ही साहसिक ढंग से स्थितियों का मुकाबला किया। यह पक्ष अलग है लेकिन उनका दूसरा पक्ष यह है कि संसद में वे कभी तार्किक और बौद्धिक भाषण देने वाले नेता के रूप में नहीं जाने गये। राष्ट्रीय राजनीति में दूसरे के कंधों पर सवार होकर उन्होंने ऊंचाई के सोपान तय किये इसीलिये जब देवीलाल का जनता दल से निष्कासन हो गया तो शरद यादव को अपने साथ खड़ा न देख वे इतना बौखला गये कि उन्होंने बेनकाब करने के लिये कहा कि यह वही शरद है जिसके पास पहनने को कपड़े नहीं थे और मैंने उसे कपड़ा मंत्री बनवा दिया था। शरद यादव इसका जवाब नहीं दे पाये थे।

मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव के मुकाबले वे इसीलिये नहीं ठहर पाये कि उनकी कहीं कोई राजनीतिक जमीन नहीं थी। लालू प्रसाद यादव के संदर्भ में वे किंग मेकर जरूर कहे जा सकते हैं लेकिन अतिमहत्वाकांक्षा की वजह से सैद्धांतिक विचलन करके उन्होंने जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल होकर सांप्रदायिक शक्तियों के साथ समाजवादियों को खड़ा कर दिया तो लालू यादव से यह हजम नहीं हुआ। लालू यादव में अन्य कितनी भी कमियां क्यों न हों लेकिन सैद्धांतिक मामले में वे चौबीस कैरेट के शुद्ध नेता हैं और शरद यादव उनके मुकाबले उनके गुरू होकर भी बेहद हल्के रहे हैं। बहुत से लोग राष्ट्रीय नेता का दर्जा का इसलिये पा गये कि उन्हें किसी न किसी संयोग से बहुत शुरूआत में संसद में जगह मिल गयी। शरद यादव भी उनमें से एक हैं वरना उनसे बढ़कर राष्ट्रीय नेता की योग्यता रखने वाले न जाने उनके कितने समकालीन नेता हैं जो राज्य की राजनीति से मोह न छोड़ पाने की वजह से उनसे पिछड़ गये। फिर भी मुलायम सिंह यादव की वजह से शरद यादव को उत्तर प्रदेश से पलायन करना पड़ा। जनता दल यूनाइटेड में भी बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा। जनाधार न होते हुये भी अपनी कई अन्य विशेषताओं की वजह से जनता दल यूनाइटेड की कमान वे कब्जयाये हुये हैं लेकिन नीतीश कुमार दिल से उनका नेतृत्व स्वीकार नहीं कर पा रहे। दोनों में शीत युद्ध चल रहा है लेकिन नीतीश कुमार भी महीन नेता हैं जिसकी वजह से वे दूरदृष्टि के तहत शरद यादव से सीधा पंगा लेने से परहेज करते हैं। मंडल आयोग की रिपोर्ट जब लागू हुयी थी उस समय देश की जातिवादी मीडिया वीपी सिंह के दो जमूरों के रूप में शरद यादव और रामविलास पासवान की पहचान बनाये हुये थी। हालांकि मीडिया के इस दुर्भावना पूर्ण दृष्टिकोण का मैं पक्षधर नहीं रहा हूं लेकिन इसका जिक्र मैं इसलिये कर रहा हूं कि आज शरद यादव यह साबित करने में तुले हुये हैं कि वीपी सिंह का मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने में कोई योगदान नहीं रहा उनकी वजह से वीपी सिंह को यह कदम उठाना पड़ा था। यह बात पासवान ने नहीं कभी नहीं कही।

सही बात यह है कि पासवान तो फिर भी अपने पहले कार्यकाल से ही कुशल संसदविद् के रूप में स्थापित हो गये थे जिस वजह से नेता थे लेकिन शरद को मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के समय और उसके बहुत बाद तक नेता नहीं सेटर के रूप में जाना जाता था। उन्हें नेता के रूप में कद्दावर करने का शुरूआती प्रयास वीपी सिंह ने किया और इसके बाद जब वे राजग में शामिल होकर सामाजिक न्याय विरोधी और वर्ण व्यवस्था वादी ताकतों से जुड़ गये तब समाज के तथाकथित कुलीन, संभ्रांत और उच्च वर्ग ने भी उन्हें नेता के रूप में स्थापित कराने में भूमिका अदा की। शरद यादव कई बार लोक सभा के सदस्य हो चुके हैं इस नाते वे एक वरिष्ठ सांसद के रूप में अस्वीकार नहीं हो सकते लेकिन सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिलना एक अलग बात है और वास्तविकता में मानक के रूप में स्थापित होना अलग बात। पुरस्कार और सम्मान पहले मानक बनते हैं लेकिन इसके बाद वे कालजयी व्यक्तित्वों के सामने अपनी प्रमाणिकता खोते चले जाते हैं। उदाहरण महात्मा गांधी हैं, साम्राज्यवादी ताकतें जब तक दुनिया में सिरमौर थीं तब तक उपेक्षित करने के लिये नोबल पुरस्कार से वंचित कर वे उन्हें नीचा दिखाने में सफल हुयीं लेकिन आज हालत यह है कि नोबल पुरस्कार देने वाले अपने आप को महात्मा गांधी को यह सम्मान न दे पाने की वजह से अपराध भावना से ग्रस्त नजर आ रहे हैं। बहरहाल जो भी हो शरद जी को बधाई और जनसत्ता को भी बधाई जिसने उन पर कालपात्र छापकर महिमा मंडन का नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

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