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लोकतंत्र के नाम पर अजीब तमाशा हो रहा है। मूल रूप से लोकतंत्र वंश शासन की जड़ता से उबरने की प्रक्रिया में नया स्थिति विकास या प्रगतिशील कदम है। अपवाद की बात अलग है लेकिन लोकतंत्र में वंश परंपरा को आम किया जाना कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता। फिर भी यहां वंश शासन चरम पर पहुंचता जा रहा है और तो भी लोकतंत्र की दुहाई दी जा रही है। किसी को इस पर कोई एतराज नहीं है।
सपा के सुप्रीमो मुलायम सिंह बार बार कहते हैं बेटा काम सुधारो तुम्हारी सरकार ठीक नहीं चल रही। साफ है कि मुलायम सिंह ने जाने अनजाने में यह स्थापित कर दिया है कि अखिलेश में अभी इतने बडे़ प्रदेश को चलाने की क्षमता नहीं है । वे ट्रेनिंग दे रहे हैं ताकि अखिलेश को इसके लिये तैयार किया जा सके। उप्र को एक अनुभवी मुख्यमंत्री चाहिये न कि मुलायम सिंह का बेटा। अगर मुलायम सिंह यह जानते हुये भी कि अभी अखिलेश पूरी तरह परिपक्व नहीं हैं उनसे सरकार चलाने पर आमादा हैं और लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं तो माना जाना चाहिये कि लोकतंत्र की जड़ें यहां अभी बेहद खोखली हैं। एक दिन पहले ही मुलायम सिंह के भाई राजवीर सिंह का बयान सामने आया था कि नेताजी चाटुकारों से घिरे हैं। बयान लोगों की भावना के अनुकूल था लेकिन उनका यह बयान इस वजह से प्रमुख अखबार में प्रथम पेज पर नहीं छपा था।
उन्हें इस कारण महत्व मिला कि वे मुलायम सिंह के भाई हैं जबकि वे राजनीति में उतने सकिय भी नहीं है। जाहिर है कि यह मान लिया गया है कि मुलायम सिंह का परिवार प्रदेश का शाही परिवार है। पूछने वाली बात यह है कि यह किस तर्ज का लोकतंत्र है और इस अनोखे लोकतंत्र के नियम कानून क्या हैं।
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