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सपा थिंक टैंक के रूप में शिवपाल का अवतार

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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समाजवादी पार्टी ने सत्ता की बाजी में अपने आपको दमदार खिलाड़ी के रूप में तो स्थापित कर लिया है लेकिन उसे अभी भी अपना कद अधूरा लगता है। जनेश्वर मिश्र के देहावसान, बेनीप्रसाद वर्मा के पाला बदल और मोहन सिंह के दण्डात्मक वनवास के बाद पार्टी में थिंक टैंक छवि का कोई नेता नहीं बचा है जिसके बिना पार्टी का कलेवर गरिमावान नहीं हो पा रहा है।
यह कमी पूरी करने के लिए पार्टी को थिंक टैंक की जरूरत थी। चूंकि समाजवादी पार्टी एक पारिवारिक दल है जिसकी वजह से इसकी दौड़ पार्टी के सुप्रीमों मुलायम सिंह के परिवार में ही सारे नगीने ढ़ूढ़ने तक सीमित है। इस कारण पहले तो रामगोपाल यादव से थिंक टैंक की खाली जगह भरने का प्रयास चला। यूं तो मुलायम सिंह यादव अभी भी उन पर पूरा विश्वास करते हैं लेकिन वे पार्टी सुप्रीमों के सगे नहीं चचेरे भाई है जिससे मूल परिवार को उनकी हैसियत को लेकर मामला कुछ जंच नहीं रहा था।
विसंगति के निवारण के लिए मुलायम सिंह के सहोदर अनुज शिवपाल सिंह यादव ने थिंक टैंक का अवतार अपनी पार्टी में लेने की पहल की। पिछले वर्ष प्रदेश में पार्टी की सरकार के गठन के तत्काल बाद उनका साक्षात्कार एक प्रमुख दैनिक में छपा जिसका सार यह बताना था कि अखिलेश यादव बचपन से ही किस तरह अपने चाचा और चाची पर आश्रित रहे हैं। बहुत की करीने से इसमें यह बात उभारी गई थी कि न केवल वे शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक व बौद्धिक रूप से भी आज तक उनकी ही उंगली पकड़कर चल पाते हैं। अपने आप को अखिलेश का रिमोट कंट्रोल जताने के शिवपाल के इस प्रयास को मुलायम सिंह व अखिलेश ने पता नहीं नोटिस में ले पाया था या नहीं लेकिन इससे शिवपाल सिंह ने भावी योजना के लिए अपना सिलसिला बनाया जो आगे और मजबूत कदम के रूप बढ़ता रहा।
आचार्य नरेन्द्र देव की जयंती पर एक प्रमुख दैनिक में शिवपाल सिंह का प्रकाशित लेख बौद्धिक के रूप में उनकी छवि उभारने के अभियान की अगली कड़ी बना। इसी बीच मायावती द्वारा सपा को गुण्डों की पार्टी करार दिये जाने के जबाव में जब शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि अगर मायावती उनकी पार्टी के लोगों को गुण्डा कहने से बाज नहीं आयीं तो वे भी उन्हें गुण्डी के सम्बोधन से नवाजेंगे। कोई भी अन्य नेता स्त्री पर काफी संभलकर सार्वजनिक कमेंट करते है लेकिन मायावती जानती हैं कि शिवपाल सिंह पर कोई लगाम नहीं है जिससे वे फजीहत के डर से सहम गई और तत्काल ही उनका बयान आ गया कि अगर सपा को गुण्डों का जिक्र करने से बहुत बुरा लगता है तो वे गुण्डा कहने से बचेंगी। शिवपाल सिंह की इस सफलता से मुलायम सिंह इतने गदगद हुए कि उन्होंने खुुलेआम उनकी तारीफ कर डाली। यह सपा सुप्रीमो की पार्टी के आचार विचार के अनुरूप शिवपाल को थिंक टैंक के रूप में तस्लीम करने की सांकेतिक रजामंदी का प्रर्दशन था। जिससे अब मुलायम ंिसंह के हौसले बुलंदी पर हैं। हाल ही में डा0 लोहिया पर उनका एक लेख प्रमुख हिन्दी दैनिक में छपा जिसका मकसद लोगों के जेहन में यह बात उतारना था कि लोहिया के बारे में उनसे बड़ा अध्येता वर्तमान में कोई नहीं है। इस दिशा में शिवपाल द्वारा की जा रही कवायद का चरम निखार परशुराम जयंती पर आयोजित ब्राह्नमण सम्मेलन के दौरान उनके सम्बोधन में प्रकट हुआ। जिसमें एक प्रतिष्ठित अखवार की रिपोर्टिंग के अनुसार उन्होंने यह जानकारी देकर उपस्थित लोगों को चौंकाया कि इतिहास तक में यह बात दर्ज है कि समाजवादी पार्टी की स्थापना का श्रेय ब्राह्नमण नेताओं को ही है। यह बताते बताते महापंडित राहुल सांकृत्यायन के विचारों की गरिष्ठ व्याख्या पर प्रवचन करने का जोखिम उठाने से भी वे नहीं चूके।
अब शिवपाल सिंह को महा ज्ञानी ध्यानी मानने में कोई गंुजाइश नहीं रह गई है। यह ब्राडिंग का दौर है जिसमें मीडिया का योगदान सबसे शक्तिशाली है। शिवपाल की खुश किस्मती है कि मीडिया उन पर मेहरवान है जिससे अपना लक्ष्य हासिल करने में उन्हें कोई रूकावट नहीं आने वाली । शिवपाल सिंह की सफलता की इस पूरी कहानी में यह संदेश निहित है कि मौजूदा समय में धनवली और बाहुवली को बौद्धिक जगत में स्वतः ही सर्वोच्च आसन मिल जाता है जिससे सादगी के नाम पर फटीचर रहने वाले बुद्धिजीवियों को वर्तमान समय की नब्ज पहचानने का सबक मिलेगा। वे अपनी स्टाइल बदलकर मौजूदा समय के सिद्ध हथकंडों में महारत हासिल करने का गुण सीखें वर्ना उनके ज्ञान विवके की धेला बराबर भी पूंछ नहीं होगी। अगर अपनी बुद्धि के गुमान में वे इस मुगालते में हो कि समाज की सामूहिक सोच हमेशा की तरह अपनी नीरक्षीर निर्णय से इतिहास के पन्नों पर अन्ततोगत्वा सही तस्वीर प्रस्तुत करेगी। तो उन्हें यह गलतफहमी दूर कर लेनी चाहिए। समाज नाम की संस्था का अघोषित तौर पर विघटन हो चुका है। लगभग डेढ़ दशक पहले मेरठ में लोकसभा के एक चुनाव में धनवल से ऐसे उम्मीदवार ने सफलता हासिल कर ली थी जिसका स्थानीय लोगों से पहले कभी जुड़ाव नहीं था। तभी साबित हो गया था कि सामूहिक बौद्धिक चेतना बाहरी विकृत प्रभावों के आगे किस तरह पंगु होती जा रही है। कैरियरिज्म के इस युग में हर व्यक्ति की दृष्टि जब अपने लाभ को देखने तक बंधी रह गई है तो कैसे संभव है कि कोई वितंडा के घटाटोप को चीरते हुए दूर पड़ी सच्चाई पर निगाह डाल पायेगा।
थिंक टैंक के बदले मायने
समाजवादी पार्टी ने थिंक टैंक के मायने भी बदल दिये हैं। पहले थिंक टैंक न्याय के आकर्षण से युक्त नई स्थापनाओं को सामने लाते थे जिसकी चकाचौंध से पार्टी लोगों को प्रभावित कर अपने पक्ष में लामबंद कर सके। आज अवसरवाद का जमाना है। घोषित विचारधारा से परे जाकर उन लोगों की गलबहियां डाली जा सकती हैं जो एकदम विपरीत ध्रुव पर हों। वरूण गांधी को वर्तमान प्रदेश सरकार द्वारा अदालत से वरी कराने में निभाई गई भूमिका से इसकी झलक मिल चुकी है। आज खुलेआम कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह का राजनाथ सिंह से गोपनीय पैक्ट हो चुका है जिसकी वजह से मुलायम सिंह ने अब क्षत्रिय समाज को पूरी तरह उनके हिस्से में छोड़ दिया है जबकि प्रतिक्रिया में भाजपा से नाराज होने वोल ब्राह्नमणों को अपने झोली में समेटकर काग्रेंस को अगूंठा दिखाने की तैयारी कर ली है। मुसलमानों को इतने लो प्रोफाइल पर रखना कि वे विकल्प के अभाव के फोबिया से ग्रस्त रहकर उनकी मनमानी के खिलाफ चू न बोल सकें इसी रणनीति का हिस्सा है। थिंक टैंक के मायने अब होगा गोयविल्स का वह चाचा जो पार्टी के यूटर्न को भी ऐसे पेश करे जिससे सवाल करने वालों की अक्ल जबाव दे जाये। अब शिवपाल सिंह को इसी मोर्चे पर इम्तिहान देना है। देखो वे कितने खरे साबित होते हैं।

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