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लुटेरी गैंग में भारतीय नगीने भी

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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अमेरिका की दूसरे नंबर की शीर्ष संघीय अदालत में भारतीय मूल के श्रीनिवासन को बतौर जज नियुक्त करने की पुष्टि वहां की सीनेट ने कर दी है। इसके पहले ओबामा प्रशासन में कई बड़े पदों पर और राज्यों के गवर्नर तक भारतीय मूल के लोग हो चुके हैं। पिछले कुछ वर्षो से अमेरिका की व्यवस्था में भारतीय मूल के अधिकारियों की भागीदारी बढ़ती जा रही है लेकिन इसे लेकर खुशफहमी में रहने की जरूरत नहीं है। अमेरिका में ऊंची कुर्सी मिलने के बाद किसी भारतीय ने अपने पूर्वजों के देश के हितों की खातिर अमेरिका की नीतियों में हस्तक्षेप करने का जोखिम उठाया हो इसका कोई उदाहरण नहीं है। उन्हें आधार बनाकर भारतीयों को मुगालते में रखने के पीछे पता नहीं क्या साजिश हो।
भारतीय मूल के लोगांे की वहां बढ़ती अहमियत की वजह की पड़ताल करनी है तो अमेरिका के गठन के इतिहास और वहां की व्यवस्था के ढ़ांचे को समझना पड़ेगा। कुछ सौ वर्ष पहले अमेरिका धंधे की तलाश में निकले परदेशियों की निगाह में आया तो वहां की सोने की खानों व अन्य कीमती संसाधनों पर उनकी निगाह ललचा उठी। आपराधिक मानसिकता के उन लोगों ने इनकी लूट के लिए मूल अमेरिकियों की हत्या कर उनके देश पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद अमेरिका को केन्द्र बनाकर सारी दुनिया को अपने साम्राज्यवाद का चारागाह बनाने के मिशन में वे जुट पड़े। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका साम्राज्यवाद की गैंग का सरगना बन गया। जो इस मकसद में आड़े आया उसे तबाह कर डाला । ताजा उदाहरण इराक का है जहां तेल खनन में अपनी कंपनियों की घुसपैठ के लिए सद्दाम हुसैन पर रासायनिक हथियार रखने का झूठा इल्जाम लगाकर उसने युद्ध थोप दिया। इसके बाद मीडिया के माध्यम से उसने सारी दुनिया मंे प्रचार युद्ध भी छेड़ा ताकि झूठ का सहारा लेकर सद्दाम का वध करने के आरोप से स्वयं को विश्व समाज में बरी कराने के लिए यह साबित किया जा सके कि वह तानाशाह और विलासी था। जिसका सफाया करना कोई पाप नहीं पूरी दुनिया पर उपकार का काम रहा। अब अमेरिका के सामने अनंत काल तक पूरी दुनिया में अपनी प्रभुता कायम रखने और संसाधनों की लूट का सिलसिला बदस्तूर जारी रखने की चुनौती है। इस कारण उसकी सत्ताधारी गैंग का दायरा चैड़ा कर दुनिया की सारी ताकतों को उसमें जगह देने की रणनीति पर अमल हो रहा है। इसमंे सफलता के लिए अमेरिका में यह भी काम किया जा रहा है कि वह किसी खास नस्ल की प्रभुता वाला देश नजर न आये। काले रंग के ओसामा को राष्ट्रपति चुने जाने और भारतीय मूल के लोगों को अपनी लुटेरी व्यवस्था में जगह देने की उसकी आतुरता के पीछे यही खेल है।
भारत ने जब से आर्थिक महाशक्ति के रूप में अपने को स्थापित किया है तबसे उसे अमेरिका की व्यवस्था का अंग बनाना नीतिगत तकाजा बन गया है। संदर्भ चाहे राष्ट्रीय हो या अन्तर्राष्ट्रीय शोषक वर्ग द्वारा समय-समय पर इस तरह का समायोजन उसका आम चरित्र है। आजादी के पहले भारत मेें ब्रिटिश प्रशासन द्वारा डकैतों को जमीदार का रूतबा देकर अपनी व्यवस्था मेें समायोजित करने का तौर तरीका बेहद जाना पहचाना है। इसी उदाहरण से अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नई पैतरेबाजी को समझने की जरूरत है।
तो अमरीका में भारतीय मूल के लोगों को सिर माथे लेने का जो संदेश दिया जा रहा है उसके पीछे एक दूरंदेशी सोच काम कर रही है। इस कारण भारतीय समाज को इतराने की जरूरत नहीं है। अमेरिका की अंधी मुनाफाखोर नीतियां मानवता विरोधी हैं जिन्होंने सभ्य और नैतिक मूल्यों की चूले हिला दी हैं। सर्वोत्तम की उत्तरजीविता का डार्विन का जंगली सिद्धंात इस युग में जमीन पर उतारकर अमेरिका पूरी दुनिया को विनाश के किस मुकाम पर ले जाने वाला है इस पर गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है। यह दूसरी बात है कि भारतीय समाज का जमीर भी मरा हुआ है। आदर्श वाक्य और सूक्तियां भारतीय समाज में सिर्फ शास्त्रो की शोभा हैं। उनके हनन या अवहेलना से यहां के लोगों का खून खोल जाये यह तो दूर की बात है वे तो खुद भी बहती गंगा में हाथ धोने लग जाने वाले चतुर लोग हैं। यह भी नहीं माना जा सकता कि सभी जगह लोग ऐसे ही खुदगर्ज होते है। दुनिया मे बहुत से लोग हैं जो ईमान के खिलाफ हो रहे कार्यो को लेकर अपने अंदर धधकती नाराजगी के चलते आतंकवादी बन जाने की सीमा तक आगे बढ़ गये हैं। दूसरी ओर भारतीय समाज अपने वजूद को बचाने के नाम पर तमाम तरह के लालच के कारण अपनी अस्मिता तक को गिरवी रखने के लिए तैयार हैं। क्या अपनी भाषा को तिरस्कृत कर इस पर गर्व जताना कि हम अग्रेंजी ज्यादा जानने की वजह से चीन से आगे हैं हमारे स्वाभिमान के पतन की पराकाष्ठा का उदाहरण नहीं है। लेकिन हजारों साल पहले हमारे ऋषियों ने नैतिकता व मूल्यों के जो बीज भारतीय सरजमीन पर छिड़के थे वे अनुकूल मौसम पाकर कभी भी फिर अंकुरित हो सकते हैं। तब शायद भारतीय समाज भी प्रतिरोध का अंदाज अख्तियार कर ले। बेशक यह संभव है कि उसका गलत वैश्विक व्यवस्था से जूझने का तौर तरीका अलग हो, नफासत का हो और बिना उग्रवादी मिजाज के, आतंकवादी तौर तरीकों का सहारा लिये बिना बदलाव के लिए अधिक प्रभावी हो। सारी दुनिया की कराहती मानवता को भारत में ऐसा वक्त आने का इंतजार है।

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