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राज परिवार की घरेलू कलह की कीमत चुका रहीं दुर्गा

बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
बेबाक विचार, KP Singh (Bhind)
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दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन को राज्य सरकार ने अब अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। इसके पीछे समाजवादी पार्टी के नेताओं की चिर-परिचित हठधर्मिता तो है ही लेकिन इससे भी बड़ा कारण मुलायम सिंह एंड फैमिली का घरेलू सत्ता संघर्ष है। जब तक प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने दुर्गा शक्ति नागपाल के निलम्बन की कार्रवाई को चूक नहीं बताया था तब तक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मूड कुछ अलग था। उन्होंने विवाद के तूल पकड़ने पर अपराध बोध से भरी चुप्पी साध ली थी और यह आभास दिलाना शुरू कर दिया था कि वे निलम्बन को समाप्त करके भूल सुधारने का फैसला ले चुके हैं।
एक साल पहले तक यह माना जाता था कि समाजवादी पार्टी के आइड़यिलॉग पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई प्रो. रामगोपाल यादव हैं। पिछली बार जब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे उस समय प्रो. रामगोपाल यादव की सैफई महोत्सव के दौरान शिवपाल के खिलाफ चिढ़ खुलेआम सामने आ गई थी, लेकिन उस दौर में शिवपाल भले ही पुलिस पर पूरा कब्जा कर चुके हों, लेकिन अन्य मामलों में रामगोपाल उन पर बहुत भारी थे। इस बार भी अखिलेश सरकार के एक साल तक उसकी कमान रामगोपाल के हाथ में ही रही। मामला उस दिन से पलटा जब शिवपाल ने मायावती के लिए कहा कि अगर उन्होंने हमारी सरकार को गुंडों की सरकार कहना बंद नहीं किया तो हम उनका स्वागत गुंडी कहकर शुरू कर देंगे। मायावती ने इससे विचलित होकर रोलबैक किया, जिससे मुलायम सिंह शिवपाल पर न्योछावर हो गये। इसके बाद शिवपाल पार्टी और सरकार पर हावी होते गये। यही नहीं शिवपाल अब रामगोपाल को नीचा दिखाना अपना मिशन बना चुके हैं। हालत यह हो गई है कि अखिलेश रबर स्टैंप बनकर रह गये हैं जबकि सरकार के असली कर्ताधर्ता शिवपाल माने जा रहे हैं। इसी उठापटक में बेचारी दुर्गा नागपाल की गर्दन भी फंस गई।
दुर्गा नागपाल के निलम्बन को सही ठहराने के लिए अब सरकार खतरनाक खेल खेलने से भी बाज नहीं आ रही। मुसलमानों का दुर्गा नागपाल के मामले से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन मस्जिद विवाद को बीच में लाकर सरकार मुसलमानों के जज्बात से उन्हें जोड़ने में लग गई है। फायरब्रांड मंत्री आजम खां को भी सरकार ने मैदान में कुदा दिया है, जिससे पूरे प्रदेश में साम्प्रदायिक आंच धधक उठी है। कोई इसे शुभ शगुन नहीं मान रहा सिवाय भाजपा और आरएसएस खेमे के। आईएएस एसोसिएशन को अभी तक तरजीह देते रहे मुख्यमंत्री रिमोट कंट्रोल के प्रभाव में अब उसे भी दुत्कारने में नहीं हिचक रहे। केंद्र अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों के उत्पीड़न को रोकने के लिए नैतिक और वैधानिक दोनों ही तौर से बाध्य है, लेकिन अखिलेश को इस मामले में केंद्र से टकराव की भी परवाह नहीं रह गई है। अभी तक नरम माने जाने वाले अखिलेश अब इस पराक्रम से सख्त दिखने की कोशिश कर रहे हैं, हालांकि इससे उनके हिस्से में नामवरी नहीं सिर्फ बदनामी आएगी। अखिलेश को जो लोग कुछ और मान बैठे थे वे सब हैरत में हैं। कुछ ही महीने पहले अपने पिताश्री के खास तत्कालीन डीजीपी एसी शर्मा को उनकी भ्रष्ट कार्यशैली की वजह से अखिलेश ने हटाकर ही दम ली थी। एडीजी लॉ एंड ऑर्डर अरुण कुमार की बेबाक कार्यशैली को वे पूरा संरक्षण दे रहे थे पर गौवध से जुड़े नेता के मामले में गोंडा के तत्कालीन एसपी नवनीत राणा पर हाथ रखने के चक्कर में अरुण बेआबरू हो चुके हैं। इसके बाद आजमगढ़ में पूर्व विधायक सर्वेश कुमार सिंह की हत्या के मामले में भी उन्हें अपने रुख के कारण सरकार की वक्रदृष्टि का सामना करना पड़ रहा है। साफ जाहिर है कि सपा अपने पुराने फार्म पर लौटती जा रही है। उगते सूरज की चमचागीरी के अभ्यस्त जो लोग नस्ल को पहचाने बिना अखिलेश में खूबियां गिनाने में लगे थे अब वे बगलें झांकने को मजबूर हैं। अनुमान यह है कि अखिलेश अपने पिता से भी दो कदम आगे निकलेंगे।

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