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समर्पण के पूर्व दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ द्वारा अपने भांजे को दी गयी बंदूक 10 साल बाद बरामद करने के दावे से जालौन जिले की पुलिस ने भानुमती का पिटारा खोल दिया है। पचनद के डकैतों के पास अत्याधुनिक आग्नेयास्त्रों का भारी जखीरा था लेकिन मारे गये या समर्पण करने वाले डकैतों से उनके असलहों की खेप की बरामदगी के नाम पर खानापूर्ति हुई। यह हथियार जमीन खा गयी या आसमान इसको लेकर पुलिस को समय-समय पर कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है।
जालौन कोतवाली पुलिस ने सोमवार को ग्राम सहाव से शंकर शर्मा को पकड़ा जिसके पास एक अवैध इकनाली बन्दूक मिली। पुलिस अधीक्षक राकेश शंकर का कहना है कि यह बंदूक अपने समय के दुर्दांत दस्यु सरगना रामआसरे उर्फ फक्कड़ ने अपने भांजे शिवशंकर को दी थी जिसे दस वर्ष पहले शंकर शर्मा ने उसके हाथों से छीन लिया था और उसी बंदूक से शिवशंकर को गोली मार दी थी। पुलिस की यह कहानी लचर और हास्यास्पद है क्योंकि दस वर्ष पहले फक्कड़ का आतंक इतना ज्यादा था कि उसके भांजे से भिड़न्त कर सके यह जुर्रत किसी में नहीं थी। भांजे को कोई गोली मार दे और जिन्दा बचा रहे यह तो किसी कीमत पर मुमकिन नहीं था।
कहां से आते थे असलहे
1982-83 में मध्य प्रदेश में हुए समर्पण में सारे डकैत सरगना समाज की मुख्य धारा में शामिल होने के लिये गाजे बाजे के साथ कानून की शरण में पहुंच गये थे लेकिन अकेला फक्कड़ था जिसने बीहड़ में ही सक्रिय बने रहने का फैसला लिया था। फक्कड़ ने इस कारण बीहड़ों में आतंक की सबसे लंबी पारी खेली। जहां तक फक्कड़ का सवाल है यह संवाददाता 1994 में जब बबाइन मुरादगंज के पास इंटरव्यू के लिये उससे मिला था तभी उसके गिरोह में लगभग आधा दर्जन सदस्यों के पास एके 47 राइफलें थीं जबकि उस समय तक यह राइफलें पुलिस तक को नहीं मिलती थीं। निर्भय गूजर, अरविन्द गूजर व अन्य बाद के सारे डकैत फक्कड़ के ही शागिर्द रहे थे। सन 2000 के बाद इन सारे डकैतों के पास एक-47 और एके-56 का भंडार आम हो गया था। यह बताने की जरूरत नहीं है कि फक्कड़ ने सेना में चोर दरवाजा बनाकर इन हथियारों को हासिल करने का रास्ता तैयार किया था। फक्कड़ के समर्पण के बाद इस मास्टर माइंड से डकैत गिरोहों के अत्याधुनिक हथियारों के स्रोत की मालूमात की जानी चाहिये थी लेकिन इसकी कोई कोशिश नहीं की गयी। यही नहीं फक्कड़ ने नाम मात्र के असलहे ही समर्पण के समय पुलिस को सौंपे। अन्य प्रमुख डकैत सरगना जिन्होंने समर्पण किया या मारे गये उनके भी पूरे असलहे बरामद करने पर ध्यान नहीं दिया गया। कुछ असलहे जो डकैत सरगना के मारे जाने के बाद पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिये थे उन्हें शो नहीं किया गया। कई पुलिस अधिकारियों ने डकैतों से मिली एके-47 और एके-56 राइफलें फर्जी मुठभेड़ों में मारे दिखाये गये तथाकथित आतंकवादियों के साथ जब्त दर्शायीं। जो असलहे डकैतों ने अपने शरणदाताओं के पास छुपाये थे। उनमें से बहुत से महंगी कीमतों पर आतंकवादियों को पहुंचा दिये गये।
समर्पण का सूत्रधार था हथियार सप्लायर
दस्यु समस्या में सबसे खतरनाक कड़ी हथियारों के सप्लायर हैं जिनके द्वारा डाकुओं को मुहैया कराये गये हथियारों से न जाने कितने पुलिस कर्मियों को शहीद किया गया है लेकिन मजे की बात यह है कि 1982 और 1983 के समर्पण में तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार व पुलिस की आंखों का तारा रहा वीरेन्द्र उर्फ टाइगर सेना का भगोड़ा होने से डकैतों को उस समय के सबसे पावरफुल हथियार बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सरकार से अभय मिलने के बाद रुतबा अफरोज होकर बाद में भी इसने अपना यह धंधा जारी रखा। यही वजह है कि पचनद के बीहड़ों में डकैत गिरोहों का रक्त बीज खत्म नहीं हो पाया। इस संवाददाता ने चौहान आम्र्स के नाम से भिण्ड , इटावा और कानपुर में बन्दूक विक्रय की दुकानें चलाने वाली फर्म द्वारा डकैतों को की जा रही कारतूस आपूर्ति का भण्डाफोड़ किया था। जिसके बाद उसकी सारी दुकानें बन्द कराकर उसे जेल भजा गया लेकिन बाद में इसकी आंच मध्य प्रदेश के तत्कालीन आईजी शिवमोहन सिंह तक पहुंची तो कार्रवाई करने वाले भिण्ड के एसपी विजय रमन का सैकड़ों किलोमीटर दूर तबादला कर दिया गया। इसके बाद पुलिस की ओर से डकैतों की शस्त्र आपूर्ति लाइन काटने का कोई गम्भीर प्रयास नहीं हुआ। इसी का नतीजा है कि आतंकवाद की भयावह स्थितियां पुष्पित पल्लवित हुईं।
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